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शिक्षा की राह में रोड़ा बनीं किताबें

By Edited By: Published: Tue, 19 Aug 2014 01:01 AM (IST)Updated: Tue, 19 Aug 2014 01:01 AM (IST)
शिक्षा की राह में रोड़ा बनीं किताबें

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : नया सत्र शुरू हुए डेढ़ महीने से अधिक का समय बीत चुका है, पर पठन-पाठन अभी रफ्तार नहीं पकड़ सका है। किताब रूपी स्पीड ब्रेकर शिक्षा की राह में रोड़ा बन गया है। अगस्त माह बीतने को है पर किताबों का पता नहीं है। कापियों के सहारे पढ़ाई जारी है। जहां किताबें हैं भी वहां उसे लेने वालों की हिम्मत जबाब दे रही है। कुछ ऐसा ही हाल है यह हाल है माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित माध्यमिक विद्यालयों का।

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कहने को माध्यमिक शिक्षा परिषद ने हर विषय के लिए प्रकाशक तय करके उन्हें बाजार में किताबें उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। लेकिन अमल अभी तक नहीं हुआ। बजारों में किताबों का टोटा है। प्रदेश के इलाहाबाद, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गाजियाबाद, मेरठ, प्रतापगढ़, कौशांबी, भदोही, मिर्जापुर, फैजाबाद सहित हर जिले में किताबों का टोटा है। स्थिति यह है कि अभी तक हाईस्कूल विज्ञान, गणित, संस्कृत व इंटरमीडिएट की गद्यगरिमा, काव्यांजलि, कथा भारती, संस्कृत, अंग्रेजी, गृहविज्ञान की किताबें बाजार में नहीं पहुंची हैं। मौके का फायदा उठाते हुए निजी प्रकाशकों की किताबें खुलेआम दोगुने-तिगुने दाम पर बिक रही हैं, जिसे खरीदना हर छात्र के बस की बात नहीं है। माध्यमिक शिक्षक संघ के नेता डॉ. शैलेश कुमार पांडेय का कहना है कि नई किताबें न मिलने से हमें पुरानी से पढ़ाना पड़ रहा है। लेकिन जिन छात्रों के पास किताब नहीं हैं उन्हें दिक्कत होती है। माध्यमिक शिक्षक संघ 'ठकुराई गुट' के प्रदेशीय मंत्री लालमणि द्विवेदी का कहना है कि किताबें न होना चिंताजनक है। ब्लैक में किताबें बेचने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

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दोगुना से अधिक है दाम

हर विषय की किताब पर निजी प्रकाशक मनमाना दाम वसूल रहे हैं। हाईस्कूल गणित की जो सरकारी किताब सौ रुपये की है निजी प्रकाशक उसे तीन सौ में बेच रहे हैं। इंटर गद्य गरिमा का सरकारी दाम 14.30 रुपये है, निजी में उसका दाम 32 रुपये है। हाईस्कूल गणित का सरकारी दाम 62.80 रुपये है, निजी में 150 रुपये। हाईस्कूल विज्ञान का सरकारी दाम 50 रुपये, निजी में 148 रुपये। हाईस्कूल गृहविज्ञान की किताब 140 रुपये की है। इंटर भौतिक 675, रसायन विज्ञान की किताब का दाम 800 रुपये है। सरकारी प्रकाशन की ये किताबें बाजार में अभी तक नहीं पहुंची हैं।

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प्रिंट रेट के नहीं हैं मायने

सरकारी प्रकाशन हो या निजी, किताबों में दर्ज प्रिंट रेट का कोई मतलब नहीं है। हर किताब प्रिंट रेट से पांच से 20 रुपये तक अधिक दाम पर बेची जा रही है।

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'निजी प्रकाशकों के ऊपर बोर्ड कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है। यूपी बोर्ड ने जो प्रकाशक नियुक्त किए हैं उनकी कौन सी किताब अभी बाजार में नहीं पहुंची, उसकी पड़ताल कराकर कार्रवाई की जाएगी।'

-शकुंतला यादव, सचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद

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बाजार में अभी तक किताबें न पहुंचना गंभीर मामला है, इससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होगी। हर विषय की किताब सस्ते दर पर मिले, इसके लिए अधिकारियों पर दबाव बनाऊंगा।

-सुरेश कुमार त्रिपाठी, शिक्षक विधायक इलाहाबाद-झांसी खंड


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