न्याय को भटक रहे माशिप के निलंबित कर्मचारी
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : न्याय के लिए वर्षो से अधिकारियों की परिक्रमा कर रहे कर्मचारियों की सुनवाई नहीं हो रही। कोर्ट का आदेश लिए जन प्रतिनिधियों, कर्मचारी नेताओं व सामाजिक संगठनों से मदद की गुहार लगाने के बावजूद उन्हें रोजगार नहीं मिला। इससे दो दर्जन से अधिक परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय बन गई है।
माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय में 24 जनवरी 1986 में विज्ञापित कनिष्ठ लिपिक पद पर 27 लोगों की नियुक्ति हुई। वहीं मई 1988 में सबकी सेवा समाप्त करने का मौखिक आदेश दिया गया। परिषद के इस कदम के खिलाफ बर्खास्त कर्मचारियों में 1988 में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, तो 11 जनवरी 1991 में उनके पक्ष में फैसला आया। इसके खिलाफ माध्यमिक शिक्षा परिषद ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल अपील की, जहां 19 अगस्त 1992 में कर्मचारियों के पक्ष में फैसला आया। निलंबित कर्मचारी मुकुल अग्रवाल व संतोष कुमार सोनकर बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद परिषद में 15 जुलाई 1994 में कनिष्ठ लिपिक पद पर भर्ती निकाली, जिसमें उन्हें शामिल होने के लिए बुलाया गया। उन्होंने बताया कि नियुक्ति पहले हो चुकी है, तो उनकी परीक्षा क्यों ली जा रही है। इसके बाद उस भर्ती को रद कर दिया गया। उन्होंने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी है।
परिषद के अपर सचिव प्रशासन कामताराम पाल का कहना है कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है। पड़ताल के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।