धम.धम्म..धम्ममम...जाति दरकिनार, समीकरण धड़ाम
एलएन त्रिपाठी, इलाहाबाद : भदोही संसदीय सीट। नए परिसीमन के बाद इलाहाबाद की हंडिया और प्रतापपुर विधानसभा तथा संत रविदास नगर की ज्ञानपुर, औराई व भदोही विधानसभाएं इसमें शामिल हैं। परंपरागत रोजगार कौशल से काफी समृद्ध होने के बाद भी देश के कुछ अति पिछड़े इलाकों में शामिल है यह क्षेत्र।
इलाहाबाद-वाराणसी मार्ग पर सैदाबाद से आगे बढ़ते ही परिदृश्य बदलने का एहसास होने लगता है। यहां से अगले 70-75 किमी दूर वाराणसी सीमा तक का इलाका व्यस्त चुनावी मौसम में भी चुपचाप व शांत नजर आता है। मुख्य मार्ग के दोनो ओर मीलों तक फैले सुनहरे खेत में गेंहू पककर कटने का इंतजार कर रहा है। कुछ ऐसा ही यहां के आम लोग भी चुपचाप व शांति के साथ इंतजार में नजर आते हैं। बोलने में भय है। मौन सशक्त है। खासोआम से मिलने पर इस घनघोर मौन में भी एक धमक साफ सुनाई देती है। धम्म.धम्.म.म.म..मोदी। यह धमक वोटों में तब्दील हो या न हो, पर जातीय समीकरणों के सहारे जीत पर निगाह टिकाए प्रत्याशियों की गणित जरूर इस धमक से हिलती नजर आ रही है।
प्रदेश में अब तक मुख्य प्रतिद्वंदी रहे सपा और बसपा के समर्थक जातीय समीकरणों के सहारे सीट पर अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। जानकार बताते हैं कि हंडिया और प्रतापपुर जुड़ने के बाद इस क्षेत्र में ब्राह्मण सर्वाधिक हैं। दूसरे नंबर पर यादव, तीसरे पर दलित और चौथे नंबर पर मुस्लिम मतदाता हैं। सपा का दावा है कि यादव व मुस्लिम उसके परंपरागत वोटर हैं। इस बार ब्राह्मण प्रत्याशी होने के नाते ब्राह्मणों का समर्थन भी पूरी तरह से उनके साथ है। इन सबको मिलाकर उनकी जीत सुनिश्चित है। बसपा समर्थक ब्राह्मणों के साथ दलित व मुस्लिम गठजोड़ पर जीत का दावा कर रहे हैं। पूर्व के चुनावों में भाजपा यहां कोई विशेष ताकत का एहसास नहीं करा पाई है। विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा अमूमन भाजपा को तीसरे या चौथे नंबर से संतोष करना पड़ता रहा है। इस बार भी अगर मोदी को अलग कर दें तो दृश्य कुछ अलग नहीं है।
इस बार मोदी का नाम एक अदृश्य फैक्टर की तरह क्षेत्र में काम करता दिख रहा है। दूसरे दलों के समर्थक भी इसे खुलकर स्वीकार करने से नहीं हिचक रहे। बरौत में प्रचार कार्य से लौटकर पान की दुकान पर सुस्ता रहे सपा नेता रमेश चतुर्वेदी और अन्य कार्यकर्ता अपने दल और प्रत्याशी का पुरजोर बखान करते हैं। दावे करते हैं कि क्षेत्र में बिजली पहुंच गई जो बसपा प्रत्याशी के मंत्री रहते भी कभी नहीं पहुंच पाई थी.वगैरह-वगैरह। मोदी का कितना असर..। यह पूछते ही बात रुक जाती है।
थोड़ा रुकने के बाद सब मानते हैं कि मोदी एक फैक्टर तो बन गए हैं। मोदी की सब बात कर रहे हैं। लोगों के दिमाग में मोदी को वोट देने की बात है। अगर यह हुआ तो सभी जातीय समीकरण और चुनावी गणित गड़बड़ा सकती है पर मोदी के नाम का वोट में तब्दील होना मुश्किल है। एक तो क्षेत्र में भाजपा कार्यकर्ताओं की मौजूदगी नहीं है दूसरे प्रत्याशी भी बाहरी हैं।
टक्कर सपा बसपा की ही रहेगी। दोनो स्थानीय प्रत्याशी हैं। वहां मौजूद अविनाश मिश्र कहते हैं कि जनता अब बिना बोले खुद जाकर वोट दे आए तो अलग बात है नहीं तो क्षेत्र में भाजपा नदारद है। हंडिया पहुंचने पर चर्चा और गंभीर हो जाती है। धुर भाजपाई देवेन्द्र सिंह चाय की दुकान पर मिल जाते हैं। कहते हैं काम को देख कर जनता तय कर लेगी कि किसे वोट दें। इस बार वोट जनता खुद के लिए करेगी। कोई बुलाने आए या न आए।
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भदोही में अभी तो भाजपा नदारद
भदोही में अभी तो भाजपा नदारद है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बसपा के गोरखनाथ जीते थे। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा सीट के तहत आने वाली इलाहाबाद की प्रतापपुर और हंडिया तथा संत रविदासनगर की ज्ञानपुर, भदोही व औराई सीटों पर सपा ने जीत हासिल की है। बसपा सभी में दूसरे स्थान पर रही। भाजपा ज्ञानपुर में तो चौथे स्थान पर थी। फिलहाल लोकसभा चुनाव 2014 में यहां सपा से ज्ञानपुर विधायक और बाहुबली सपा नेता विजय मिश्र की पुत्री सीमा, बसपा से पूर्व कैबिनेट मंत्री राकेशधर त्रिपाठी, भाजपा से वीरेन्द्र सिंह व कांग्रेस से सरताज इमाम चुनाव लड़ रहे हैं।