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चांद पर चहलकदमी करने जा रहा अपना अंतरिक्ष यान

104 उपग्रह एकसाथ प्रेक्षित कर दुनिया में तहलका मचाने वाले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) के वैज्ञानिक 2018 में एक और इतिहास रचने जा रहे हैं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 26 Feb 2017 09:53 PM (IST)Updated: Sun, 26 Feb 2017 10:02 PM (IST)
चांद पर चहलकदमी करने जा रहा अपना अंतरिक्ष यान
चांद पर चहलकदमी करने जा रहा अपना अंतरिक्ष यान
अलीगढ़ (जेएनएन)। 104 उपग्रह एकसाथ प्रेक्षित कर दुनिया में तहलका मचाने वाले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) के वैज्ञानिक 2018 में एक और इतिहास रचने जा रहे हैं। यह इतिहास चंद्रयान-2 के जरिए रचा जाएगा। खास बात ये होगी कि इस बार यान चंद्रमा पर चहलकदमी भी करेगा। चंद्रयान-1 में ऐसा नहीं हुआ था। इसे चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे और पानी के अंश व हीलियम की तलाश करना था। 
ये महत्वपूर्ण जानकारी रविवार को अहमदाबाद के भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के पूर्व निदेशक प्रो. जितेंद्र नाथ गोस्वामी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दी। प्रो. गोस्वामी भूगर्भ विज्ञान विभाग में सोमवार से शुरू होने वाली दो दिवसीय सेमिनार में भाग लेने आए हैं। चंद्रयान-1 के प्रिंसिपल साइंटिस्ट रहे प्रो. गोस्वामी ने बताया कि चंद्रयान-2 को 2018 तक भेजने की योजना है। इस अभियान में भारत में निर्मित एक लूनर आर्बिटर (चंद्रयान) एक रोवर और एक लैंडर शामिल होंगे। पहिएदार रोवर चंद्रमा की सतह पर चलेगा और ऑनसाइट विश्लेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा।
आंकड़ों को यान आर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जाएगा। प्रो. जितेंद्र नाथ गोस्वामी ने कहा यान को हम चंद्रमा की उस कक्षा में उतारने की कोशिश करेंगे जहां सूरज की रोशनी नहीं पड़ती। इसके लिए ऊर्जा की भी चुनौती होगी, क्योंकि हमारा यान सौर ऊर्जा से चलेगा। जबकि दूसरे देशों के यान में छोटे-छोटे न्यूक्लियर रिएक्टर होते हैं। उन्होंने कहा कि 20 साल पहले अमेरिका जैसे देश रिमोट सेंसिंग से फसलों की स्थिति पता कर लेते थे। अब ये काम हम भी सेटेलाइट के जरिए कर रहे हैं, फसल की उपज तक का अनुमान लगा लेते हैं। भारत के पास स्पेस क्राफ्ट दूसरे देशों की तुलना में कम हैं। बताया कि पीएम मोदी इसमें पर्सनल रुचि ले रहे हैं। किसी भी अभियान के लिए सरकार पैसा भी भरपूर दे रही है। इसरो के इंजीनियर अभियान की रीढ़ की हड्डी होते हैं। क्योंकि वैज्ञानिकों की मांग के अनुसार वे मशीनरी तैयार करते हैं। मंगल पर पानी नहीं हैं, वहां पानी के मॉलिक्यूलर मिले हैं। चंद्रमा पर भी जीवन नहीं हैं। 

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