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कागजों में उलझ न जाए यूपी के बंदियों की रिहाई!

बंदियों के बोझ से जेलों की बिगड़ती दशा पर अक्सर चिंता जताई जाती है। हकीकत ये है कि क्षमता से अधिक बंदी भरने से न तो बुनियादी सुविधाएं मुहैया हो पातीं, न सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान दिया जाता।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 05:25 PM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 06:23 PM (IST)
कागजों में उलझ न जाए यूपी के बंदियों की रिहाई!
कागजों में उलझ न जाए यूपी के बंदियों की रिहाई!

अलीगढ़ (लोकेश शर्मा)। बंदियों के बोझ से जेलों की बिगड़ती दशा पर अक्सर चिंता जताई जाती है। वारदात होने पर सुधार दावे होते हैं। मगर, हकीकत ये है कि क्षमता से अधिक बंदी भरने से न तो बुनियादी सुविधाएं मुहैया हो पातीं, न सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान दिया जाता। यही वजह है कि दूषित भोजन, साफ-सफाई, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के अभाव को लेकर अक्सर बंदियों व कैदियों में असंतोष रहता है।

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 पत्रावलियों में न उलझे रिहाई

दरअसल, जेल प्रशासन ये स्वीकार करना नहीं चाहता कि बंदियों के भी कुछ अधिकार होते हैं। शायद यही वजह है कि शासन ने बंदियों की बढ़ती संख्या नियंत्रित करने के लिए प्रत्येक जिले में अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी (यूटीआरसी) गठित करने के आदेश 13 फरवरी को जारी किए हैं। कमेटी जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सहयोग से इसकी समीक्षा कर सुनिश्चित करेगी कि कोई विचाराधीन बंदी अनावश्यक जेल में निरुद्ध न रहे व पत्रावलियों में उसकी रिहाई उलझी न रहे।

निजी मुचलके पर रिहाई

आदेश में सीआरपीसी की धारा- 436 के तहत जमानती अपराध में सात दिन न्यायिक हिरासत में रहे बंदी को निजी मुचलके पर छोडऩे के अलावा महिला, बाल अपराध छोड़कर सात साल से कम सजा वाले प्रकरण सुलह-समझौते से सुलझाने के सुझाव दिए हैं।

बंदियों की दुर्दशा के कारण

- जेल में क्षमता से अधिक बंदियों की संख्या।

- विचारण (ट्रायल) में विलंब।

- बंदियों के प्रति दुव्र्यवहार, उत्पीडऩ।

- स्वास्थ्य व स्वच्छता की अनदेखी।

- अपर्याप्त भोजन व वस्त्र।

- जेल अधिकारियों में परस्पर ताल-मेल की कमी।

- खुली जेल के प्रबंधन में त्रुटि।

- जेलों में दुव्र्यसन।

ये हैं कुछ जेलों के हालात

कारागार, क्षमता, निरुद्ध

अलीगढ़, 1148, 3150

गाजियाबाद, 1704, 4066

मुरादाबाद, 652, 3023

मुजफ्फरनगर, 870, 2793

नैनी सेंट्रल, 2060, 3852

आगरा, 1015, 2643

बदायूं, 529, 1931

वाराणसी, 747, 2118

शाहजहांपुर, 511, 1842

इटावा, 610, 1900

कानपुर, 1245, 2522

बुलंदशहर, 890, 2065

मथुरा, 554, 1726

सहारनपुर, 533, 1607

देवरिया, 533, 1574

फीरोजाबाद, 720, 1751

झांसी, 416, 1406

गोरखपुर, 822, 1714

मेरठ, 1707, 2589

क्षमता से  अधिक बंदी होने से होती हैं समस्याएं

जिला विधिक सेवा प्राधिकारण के सचिव त्रिभुवन नाथ पासवान का कहना है कि जेल में क्षमता से अधिक बंदियों से समस्याएं पैदा होती हैं। इसके लिए यूटीआरसी गठित की गई है। कमेटी में सीजेएम, डीएम, एसएसपी व जिला प्रोबेशन अधिकारी हैं, जो इसकी समीक्षा करते हैं।


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