अलंकार व छंद मुक्त होकर इठला रही कविता
विनोद भारती, अलीगढ़ जो कविता कभी मनुष्य के भावों, विचारों, अनुभुतियों और कल्पनाओं का सहज प्रकटीकरण
विनोद भारती, अलीगढ़
जो कविता कभी मनुष्य के भावों, विचारों, अनुभुतियों और कल्पनाओं का सहज प्रकटीकरण थी, आज अलंकार व छंदों से मुक्त होकर विचारों की कविता बन गई है। भावों में गहराई के अभाव से साहित्यकार तनिक चिंतित जरूर हैं, मगर इस बदलाव को सहर्ष स्वीकार भी कर रहे हैं।
अतरौली निवासी कवयित्री डॉ. ऊषा अरोड़ा कहती हैं कि भारतीय और पश्चिमी कवियों ने कविता को जो परिभाषाएं दी हैं, आज वह उससे बेशक भिन्न है, मगर यथार्थ से जुड़े रहना इसकी विशेषता है। आज की कविता को अलंकारों से बांधना या परिभाषा में गूंथना उचित नहीं होगा। कई पुरस्कार पा चुकीं डॉ. अरोड़ा कहती हैं कि कविता में अलंकार और छंद नही ढूंढे़ जाते। कवि सम्मेलनों में श्रोताओं की तालियों की गूंज के बीच आभास नहीं होता कि कितने घंटे गुजर गए, मगर आज की कविता की खासियत यह है कि वह यथार्थ के साथ तबीयत से जुड़ी हुई है। अब कविता पाठ शौक के साथ धन अर्जित करने का माध्यम भी बन सकता है।
शब्दों की कठिन शब्द साधना ही कविता : एएमयू में ¨हदी विभाग के प्रोफेसर शंभूनाथ तिवारी कहते हैं कि पहले कविता छंद में स्वत: लिख जाती थी। कबीर को छंद का ज्ञान नहीं था, मगर जो लिखा वह दोहा बन गए। आधुनिक कविता में छंद की बंदिश नहीं। इसे मुक्त छंद कह सकते हैं। यह बुरी नहीं, मगर इसमें पहले की तरह भावों की गहराई व विचारों का गंभीर चिंतन नहीं। कविता शब्दों की गंभीर साधना है। सटीक शब्द चयन का अभाव भी खटकता है।
सामाजिक विद्रूपता पर कटाक्ष : यशभारती से सम्मानित गीतकार डॉ. विष्णु सक्सेना पुरजोर दावे से कहते हैं कि आज की कविता में भी पहले की तरह ही धार है। यह सामाजिक विद्रूपताओं पर तीखा कटाक्ष भी करती है। यह और बात है कि राजनेता उसे गंभीरता से नहीं लेते। नए-नए भावों की लहरों पर सवार होकर कविता अपने उद्देश्य को पा रही है। सच तो ये है कि अब पहले से ज्यादा लिखने वाले हो गए हैं। साधना के अभाव में जरूर कई बार कविता स्तरहीन हो जाती है।
इनसर्ट
सोशल साइट्स पर भी 'कविता राग'
लेखकों के लिए सोशल मीडिया भी बड़ा अड्डा बन चुका है। फेसबुक पर 'मुक्तक मंच' ही तीन हजार रचनाकारों को जोड़ चुका है। इसके संयोजक व कवि लव कुमार प्रणय बताते हैं कि मंच से जुड़े रचनाकार नवोदित लेखकों को न सिर्फ सिखाते हैं, खुद भी बहुत कुछ सीखते हैं। प्रणय के मुताबिक एक जमाना था, जब अच्छी रचनाएं लिखकर भी तमाम कवि गुम हो जाते थे। आज सोशल साइट्स के रूप में सभी को ऐसा मंच हासिल है, जिसकी गूंज दूर तक पहुंचती है।
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