5 दिन में 10 माह की जांच..गजब है!
अलीगढ़: एक जांच जो पुलिस 10 महीने में पूरी नहीं कर पाई, हाईकोर्ट का डंडा घूमा तो पांच दिन में पूरी
अलीगढ़: एक जांच जो पुलिस 10 महीने में पूरी नहीं कर पाई, हाईकोर्ट का डंडा घूमा तो पांच दिन में पूरी कर डाली। किस्सा 10 माह पहले अगवा किशोरी से जुड़ा है। हाईकोर्ट ने तल्ख तेवर दिखाए तो किशोरी बरामद हुई ही, आरोपी भी दबोच लिए। जवाब से खफा कोर्ट ने प्रकरण को नजीर मानते हुए गृह सचिव व एडीजी (क्राइम) से सूबेभर के गंभीर मामलों में जांच का ब्योरा तलब किया है।
ये था मामला
जिला मुख्यालय से 25 किमी. दूर अतरौली क्षेत्र के गांव चकाथल से 29 जून-14 को किशोरी (15) लापता हुई। तीन जुलाई को गांव के ही शेखर व जीतू पर रिपोर्ट हुई। बेटी तलाश के लिए पिता ने दर्जनों बार गुहार की। कोर्ट के प्रगति रिपोर्ट पूछने पर भी पुलिस 10 माह तक टालमटोल करती रही। पिता हाईकोर्ट पहुंच गए।
एक कलम से तफ्तीश
20 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अतरौली एसओ विनोद कुमार (विवेचक) को केस डायरी समेत पांच मई को तलब किया। डायरी देख चकित हाईकोर्ट ने आदेश में कहा, पूर्व विवेचकों ने 10 माह से जांच का एक पर्चा नहीं काटा। आदेश होते ही मौजूदा विवेचक ने कई पर्चे एक ही समय, एक ही कलम से एक ही जगह बैठकर काट दिए। हैंड राइटिंग भी एक ही है।' खफा कोर्ट ने 25 मई को अफसर तलब कर लिए।
किशोरी बरामद
10 मई को उन्नाव से किशोरी बरामद कर ली गई। अभियुक्त भी गिरफ्तार कर लिए। किशोरी ने कोर्ट में कहा कि नशीला पदार्थ सुघांकर आरोपी कानपुर ले गए थे। वहां शेखर ने जबरन शादी की और दुष्कर्म करता रहा।' इस पर पुलिस ने दुष्कर्म व पोस्को एक्ट की धारा बढ़ा दी।
एसएसपी की सफाई
25 मई को प्रमुख गृह सचिव देवाशीष पांडा, एडीजी (क्राइम) एचसी अवस्थी व एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने हाईकोर्ट में सफाई दी कि किशोरी मिल चुकी है। आरोपी जेल गए। हाईकोर्ट ने पूछा, 10 माह से पुलिस क्या कर रही थी? आदेश के बाद ही क्यों हरकत में आई? 16 जुलाई तक तीन बिंदुओं पर शपथपत्र के साथ प्रदेशभर का ब्योरा भी मांगा है।
जिलावार मांगा जवाब
- छह माह से लटकी एक जून-15 से पूर्व के गंभीर अपराधों की सूची।
- मॉनिट¨रग के लिए जिला, जोन, निदेशालय व सचिवालय स्तर पर क्या उपाए होते हैं?
- एक जनवरी-10 से 31 मई-15 तक लापरवाह जांच अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई?
------
इनका कहना है
पुलिस ने घनघोर लापरवाही की है। दोषियों को दंड मिलना ही चाहिये।
- सुधीर शर्मा, पीड़ित पक्ष के वकील।
-----