ताड़का के वध से खुश हुए ऋषि-मुनि
जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : चारों पुत्रों को बड़ा होते देख राजा दशरथ आनंदित हो रहे थे, उसी समय ऋषि विश्वामित्र का राजमहल में प्रवेश होता है। राजा दशरथ बड़े ही आदर और सत्कार के साथ ऋषि की अगुवानी करते हैं। विश्वामित्र ने ज्यों ही राम-लक्ष्मण ऋषि-मुनियों की सुरक्षा के लिए मांगा, अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट अधीर हो गए। वे अपने दोनो आंखों के तारों को वन में भेजने को तैयार नहीं हुए। अचलताल स्थित श्रीराम लीला में हर पात्रों ने अपनी भूमिका बेहतरीन ढंग से निभाई। विश्वामित्र ने राजा दशरथ से कहा कि हे राजन, वन में राक्षसों का आतंक है। ऋषि-मुनि यज्ञ नहीं कर पा रहे हैं। राम और लक्ष्मण को उनकी रक्षा के लिए साथ भेज दें। राजा दशरथ कहते हैं कि मेरे दोनों पुत्र अभी काफी छोटे हैं, उनके स्थान पर मैं चल सकता हूं। इस पर विश्वामित्र क्रोधित हो उठते हैं। इसके बाद राजा दशरथ भारी मन से दोनों पुत्रों को वन में भेजते हैं। वन में पहुंचे श्रीराम-लक्ष्मण ने ताड़का, सुबाहु आदि राक्षसों का वध कर दिया। ऋषि-मुनि सब आनंदित हो उठे। इसी बीच जनकपुरी से सीता स्वयंवर का न्योता आता है। विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को लेकर जनकपुरी की ओर चल देते हैं। रास्ते में पत्थर बनी नारी अहिल्या का पांव से छूकर उद्धार करते हैं। जनकपुरी की पुष्प वाटिका में सीता जी का श्रीराम से मिलन होता है। श्रीराम की सुंदरता का वर्णन सीता जी की सखियां करतीं हैं। बृज नाट्य कला केंद्र मथुरा के कलाकारों ने अपने बेहतरीन मंचन से दर्शकों को देररात तक बांधे रखा। मुख्य संयोजक विमल अग्रवाल, महामंत्री अरविंद अग्रवाल, संयोजक संदीप रंजन, मानव महाजन, सुनील गर्ग, अतुल कुलश्रेष्ठ, शैलेंद्र अग्रवाल, गोपाल वाष्र्णेय, हरीश शर्मा, प्रदीप भारद्वाज, टीएन मित्तल, राजीव डालडा आदि मौजूद थे।