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लेखक पढ़ना भूल गए, पाठक ही क्या करें

By Edited By: Published: Mon, 15 Sep 2014 02:11 AM (IST)Updated: Mon, 15 Sep 2014 02:11 AM (IST)
लेखक पढ़ना भूल गए, पाठक ही क्या करें

अलीगढ़ : यूपी भाषा संस्थान के अध्यक्ष, पद्मभूषण गोपालदास नीरज ने कहा कि हिंदी के लेखकों की भरमार है। वे लिखना बहुत चाहते हैं लेकिन खुद कुछ पढ़ना नहीं चाहते। उनका लिखा पाठकों के सरोकार और समझ से दूर है। लिहाजा, हिंदी की दुर्दशा के लिए पाठकों को कोसना गलत है। इसके लिए सिर्फ लेखक जिम्मेदार हैं। वे अच्छा लिखें तो न सिर्फ पाठकों को मजा आएगा, बल्कि हिंदी का भी डंका बजेगा। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस के मौके पर 'दैनिक जागरण' के साथ नीरज ने कई सवालों पर बेबाक राय दी। पेश हैं, मुख्य अंश..

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आज हिंदी दिवस है। क्या कहेंगे?

एक दिन हिंदी दिवस मना लेने से कुछ नहीं होने वाला। हिंदी का दिवस तो हर रोज मनाना चाहिये। मैं समझता हूं कि कोई सरकार हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बना सकती। सरकार तो सिर्फ संपर्क भाषा बना सकती है। राष्ट्रभाषा तो लेखक व जनता ही बनाएगी। जनता हिंदी को मातृभाषा मान लेगी तो इसे राष्ट्रभाषा बनने से कौन रोक लेगा?

नए दौर में हिंदी के लेखकों, प्रकाशकों और पाठकों की संख्या बढ़ी है। इंटरनेट का नया संसार है। फिर भी हिंदी पिछड़ी क्यों है?

यह सही है कि आज लेखक बहुत हैं। प्रकाशकों की संख्या भी बढ़ी है। पाठक भी बढ़ रहे हैं। फिर भी, हिंदी उतनी समृद्ध नहीं हो पाई, जितनी कि अन्य भाषाएं। इसका मुख्य कारण लेखक हैं। वे जनता की समझ आने लायक नहीं लिख पा रहे हैं। दरअसल, नए लेखक लिखना तो बहुत चाहते हैं, पढ़ना बहुत कम। भाषा में गहराई हो और उसे हल्की जबान में कह दिया जाए तो सबकी समझ में आता है। मैंने इसका हमेशा ध्यान रखा। तभी, दशकों पहले लिखी यह कविता सबकी जुबां पर है, ..जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

नए दौर की कविता को कैसे देखते हैं?

आज तमाम अच्छे लोग हैं, जो बढि़या रचनाएं कर रहे हैं। कुछ लोग सस्ते लेखन से ताली पिटवा रहे हैं। मंच पर थर्ड क्लास व्यंग्य हो रहे हैं। नेताओं के मजाक उड़ाए जा रहे हैं। यह कविता नहीं है। कविता वो है, जो समाज को समझाए।

यूपी भाषा संस्थान क्या कर रहा है?

भाषा संस्थान ने इस साल कई कार्यक्रम कराए हैं। लखनऊ में 26 सितंबर को पंच-भाषायी कवि सम्मेलन करा रहा हूं। इसमें भोजपुरी, ब्रज, राजस्थानी, बुंदेली व अवधी को शामिल किया गया है। अक्टूबर में हाथरस में ब्रज भाषा के छंदों का पाठ और 'ब्रज भाषा का साहित्य में योगदान' विषय पर संगोष्ठी कराएंगे। नवंबर में इंडो-पाक मुशायरा-कवि सम्मेलन कराने की योजना है।


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