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अवध की मिट्टी में प्रेम-सौहार्द की महक

By Edited By: Published: Fri, 29 Aug 2014 01:44 AM (IST)Updated: Fri, 29 Aug 2014 01:44 AM (IST)

जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : लंदन से आकर अवध की जमीन पर अवधी भाषा पर शोध करने वाली प्रो. फ्रांसिसका औरेसिकनी यहां की संस्कृति पर निहाल हैं। लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में प्रो. फ्रांसिसका ने कहा कि वहा की मिट्टी में प्रेम-सौहार्द की महक है। मलिक मुहम्मद जायसी व तुलसीदास जैसे कवियों ने भी अवधी भाषा व संस्कृत को बढ़ावा दिया।

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प्रो. फ्रांसिसका औरसिनी गुरुवार को एएमयू में थीं। फारसी शोध संस्थान में आयोजित अवध के साहित्यक इतिहास पर व्याख्यान देते हुए कहा, सूफी संतों ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया वह प्रेम की भाषा थी। फारसी लंबे समय तक भारत की भाषा रही है। महावीर प्रसाद द्विवेदी व रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का जो इतिहास लिखा है, वह आज भी पढ़ाया जाता है। हालांकि उसमें मुसलमानों के योगदान पर चर्चा नहीं है, जबकि मुस्लिम कवियों और लेखकों ने अपनी रचनाओं में बहुभाषी और बहु संस्कृतिवाद को बढ़ावा दिया है। कुलपति जमीरउद्दीन शाह ने कहा कि मुगल शासन काल के पतन के बाद अवध संस्कृति व साहित्यक गतिविधियों का केंद्र बनाया और अवध ने देश की विभिन्न भाषाओं को प्रोत्साहित किया। सूफीवाद का प्रभाव भी यहां की संस्कृति पर पड़ा। कुलपति ने कहा कि मेरा जन्म अवध क्षेत्र के बहराइच जिले में हुआ था। आज भी तमाम यादें ताजा हैं। सहकुलपति एस.अहमद अली ने कहा कि प्रो.फ्रांसिसका ने लंदन से आकर यहां शोध कार्य किया, इसलिए एएमयू के छात्रों को भी प्रो. फ्रांसिकी से प्रेरणा लेनी चाहिए। उर्दू के प्रख्यात विद्वान पद्मश्री प्रो. काजी अब्दुल सत्तार ने कहा कि अवध का क्षेत्रफल समय -समय पर बदलता रहा है। बहराइच से इलाहाबाद, बनारस और गोरखपुर तक अवध कहलाता था। अब केवल मानचित्र रह गया है। हिंदी की प्रख्यात लेखिका डॉ. नमिता सिंह ने कहा क भारत में नवजागरण काल की लहर बंगाल से शुरू हुई। रहीम का उदाहरण देते हुए कहा कि जिन्होंने ब्रज, अवधी और उर्दू में लिखा व तुलसीदास ने जन भाषा में लिखा, इसलिए घर-घर में यह भाषा पहुंची। फारसी अनुसंधान केंद्र की निदेशक प्रो. आजरमी दुख्त सफवी ने सभी का स्वागत किया।


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