अस्तित्व बचाने को जूझती अकबर की शिकारगाह
जागरण संवाददाता, आगरा: सदियों से मनुष्य शिकार कर रहा है। कभी पेट की भूख मिटाने को तो कभी मनोरंजन को।
जागरण संवाददाता, आगरा: सदियों से मनुष्य शिकार कर रहा है। कभी पेट की भूख मिटाने को तो कभी मनोरंजन को। इससे उसके साहस का भी परिचय मिलता था। राजा-महाराजा तो घने जंगलों में शिकारगाह बनवाया करते थे। मुगल शहंशाह अकबर ने भी किरावली में शिकारगाह बनवाई थी। आज यह अपना अस्तित्व बचाने को जूझ रही है। तीन बार जिला योजना में प्रस्ताव जाने के बावजूद इसके संरक्षण को बजट नहीं मिला। इसके जीर्णोद्धार का ख्वाब हर बार टूट गया।
आगरा व फतेहपुर सीकरी के मध्य तहसील किरावली का पुराना भवन अकबर की शिकारगाह के रूप में जाना जाता है। आज यह खस्ताहाल हो चुका है। उप्र पर्यटन विभाग पांच वर्षो में तीन बार जिला योजना में इसके संरक्षण को प्रस्ताव बनाकर दे चुका है। अंतिम बार इसके जीर्णोद्धार को 50 लाख रुपये की मांग की गई थी। हर बार इसे जिला योजना में जगह तो मिली, लेकिन जीर्णोद्धार को बजट नहीं मिल सका। समय के साथ यह स्मारक अब जर्जर होती जा रही है। इतिहास की इस अनमोल धरोहर को बचाने की फिक्र किसी विभाग को नहीं दिखती। उपनिदेशक पर्यटक दिनेश कुमार बताते हैं कि शिकारगाह के संरक्षण को बजट नहीं मिल पा रहा है। हम उसके संरक्षण के पूरे प्रयास करेंगे।
इतिहास की अहम कड़ी
अकबर ने फतेहपुर सीकरी को वर्ष 1570 से 1585 तक अपनी राजधानी बनाया था। तब शाहगंज से उटंगन-खादी नदी के खादर तक घना जंगल था। इतिहासकारों के अनुसार उसने किरावली में शिकारगाह बनवाई थी। समय मिलने पर अकबर लाव-लश्कर के साथ शिकार करने यहां आता था। अन्य दिनों में यहां सैनिक मौजूद रहते थे। वर्ष 1803 में आगरा आने के बाद अंग्रेजों ने भी इसी शिकारगाह को सामरिक ठिकाने के रूप में इस्तेमाल किया। बाद में यहां तहसील बना दी गई। आजादी के बाद 80 के दशक में राज्य पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल किया।