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'पंछी' को उड़ने की राह दिखाते थे सीनियर

By Edited By: Published: Tue, 02 Sep 2014 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 01:00 AM (IST)
'पंछी' को उड़ने की राह दिखाते थे सीनियर

जागरण संवाददाता, आगरा: एसएन मेडिकल कॉलेज में पहुंचे 'पंछी' (एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र) राह भटक सकते हैं। वे खुद को डॉक्टर समझने लगते हैं और गलत राह पर जाने की आशंका रहती है। एसएन में सीनियर 'पंछी' को उड़ने की राह दिखाते थे। अपने जूनियर के लिए जान देने को तैयार रहते थे। एसएन में देश में लगी इमरजेंसी 1975 के बाद रैगिंग पर सख्ती हुई। ऐसे में सोमवार को बैच 2014 के छात्र पहली बार ड्रेस कोड के बिना पहुंचे। उन्हें कॉलेज के साथ ही सिलेबस की जानकारी दी गई।

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एमबीबीएस बैच 2014 के छात्रों को एनाटॉमी विभाग में कॉलेज के बारे में बताया गया। रंग बिरंगे कपड़े पहने 129 एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राएं पहुंची। इस बार सख्ती के चलते ड्रेस कोड (रेड रिबन, रेड सॉक्स रेड टाई) की अनिवार्यता नहीं थी। उन्हें एंटी रैगिंग सेल की जानकारी देने के साथ ही फोन नंबर भी दिए गए। साथ ही पढ़ाई करने के लिए आगाह किया गया।

कॉलेज परिसर में सख्ती, बाहर के लिए आगाह

आशंका है कि कुछ शरारती छात्र जूनियरों की रैगिंग ले सकते हैं। इसके लिए जूनियरों को आगाह किया गया। उनसे कहा गया कि हॉस्टल में न जाएं। इसके लिए सीनियर ब्वायज हॉस्टल के बाहर नोटिस बोर्ड भी लगा दिया गया है। साथ ही एक ग्रुप में न चलने के लिए कहा गया है।

कॉलेजों में रैगिंग की मानीटरिंग करेगा विवि

अंबेडकर विवि से संबद्ध एसएन मेडिकल कॉलेज सहित अन्य कॉलेजों में रैगिंग की मॉनीटरिंग विवि प्रशासन करेगा। इसके लिए सभी कॉलेज प्रशासन से एंटी रैगिंग सेल और छात्र छात्राओं का ब्यौरा भी मांगा गया है। रैगिंग की शिकायत होने पर संबंधित कॉलेज को विवि को भी रिपोर्ट करना होगा। इसमें विवि द्वारा अपने स्तर से जांच कर कार्रवाई की संस्तुति की जाएगी।

पहला दिन

एमबीबीएस सीट - 150

प्रवेश हुए - 135 (15 सीटों के लिए एआइपीएमटी और सीपीएमटी की काउंसिलिंग)

पहले दिन उपस्थित हुए छात्र - 129

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सीनियर ने खूब रैगिंग की, लेकिन मारपीट कभी नहीं की गई। कोई जूनियर राह न भटक जाए, इसके लिए सीनियर सख्ती करते थे। इसमें आत्मीयता होती थी। सीनियर अपने जूनियर के लिए जान तक देने को तैयार रहते थे।

डॉ. अजय अग्रवाल, प्राचार्य एसएन मेडिकल कॉलेज (एमबीबीएस बैच 1974)

एमबीबीएस में सलेक्शन के बाद होशियार बच्चों के बिगड़ने की आशंका रहती है। रैगिंग में सीनियर ऐसे बच्चों को बिगड़ने से रोकते थे। हमारे बैच के 10 बच्चों की रैगिंग के बाद सीनियर ने रेस्टोरेंट में खाना खिलाया और फिल्म भी दिखाई।

डॉ. यूसी गर्ग मनोचिकित्सक (एमबीबीएस बैच 1977)

मैंने अपने सीनियर की फाइल बनाई थी। उन्होंने कहा था कि दिल्ली का कोई काम हो तो बता देना। आगरा में एमबीबीएस की पढ़ाई की किताब नहीं मिलती थी, उनसे किताब के लिए कहा तो वे दिल्ली से मेरे लिए सभी किताब ले आए।

डॉ. भूपेंद्र चाहर, जूडा अध्यक्ष (एमबीबीएस बैच 2005)


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