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बांसुरी से बिखरा ब्रज का माधुर्य

By Edited By: Published: Sun, 27 Oct 2013 09:27 PM (IST)Updated: Sun, 27 Oct 2013 09:27 PM (IST)

जागरण संवाददाता, आगरा: कान्हा की भूमि पर संगीत सम्मेलन के मंच से रविवार को बांसुरी का माधुर्य बिखरा। इसका श्रोताओं ने भरपूर लुत्फ उठाया और दाद दी।

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संगीत कला केंद्र द्वारा माथुर वैश्य भवन में आयोजित अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन में रविवार को प्रमुख आकर्षण रहे विख्यात बांसुरी वादक दिल्ली के चेतन कुमार जोशी। उन्होंने जैसे ही बांसुरी की तान छेड़ी, श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। बार-बार तालियां गूंजीं। उन्होंने राग चारुकेसी में आलाप जोड़, झाला को रूपक ताल में प्रस्तुत किया। उसके बाद तीन ताल में दो गतें बजाईं। उनके वादन में लयकारी और तानों की विविधता प्रमुख थी। अंत में उन्होंने राग पीलू में एक धुन पेश की, जिसमें अलग-अलग रागों का मिश्रण था। उनके वादन में सुरों की मिठास, गमक और तान की तैयारियां खास रहीं। उनके साथ मोरध्वज तबले पर संगत की संतोष कुमार ने। समारोह में उन्हें समिति की ओर से संगीत कला गौरव का अवार्ड प्रदान किया गया।

इससे पूर्व मेघा और शुभ्रा तलेगांवकर ने अपनी गायकी से सभी का मन मोह लिया। इंदौर से आईं शोभा चौधरी का शास्त्रीय गायन भी सराहनीय रहा। सायंकालीन सत्र में पं. तोताराम ने पखावज पर चार ताल में रचना प्रस्तुत की। उन्हें व कोलकाता के नरेंद्र नाथ धर को संगीत कला रत्न और हरिद्वार से आए भद्रसेन कुमार को रघुनाथ तलेगांवकर स्मृति पुरस्कार दिया गया। बनारस से आईं संगीता दस्तीकार और चीन से आईं झेन शाउ पिंग का कथक सराहनीय रहा।

कार्यक्रम का संयोजन केशव तलेगांवकर ने व अध्यक्षता सरोज गौरिहार ने की। अतिथियों का स्वागत अनिल वर्मा, प्रेरणा केशव, संतोष कुलश्रेष्ठ, डॉ. लोकेंद्र तलेगांवकर, रवींद्र, गिरींद्र तलेगांवकर आदि ने किया।

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(बातचीत)

उपेक्षित है कान्हा की बांसुरी

आगरा: सुरमणि और बिस्मिल्ला खां जैसे अवार्ड से सम्मानित चेतन जोशी का कहना है कि जिस ब्रज में कान्हा ने बांसुरी बजाई, वहीं यह वाद्य यंत्र उपेक्षित है। युवा पीढ़ी इसमें कोई रुचि नहीं दिखा रही।

पत्रकारों से बात करते हुए श्री जोशी ने बताया कि वे दिल्ली में प्रति वर्ष बांसुरी वादन की कार्यशाला आयोजित करते हैं, जिसमें देश के विभिन्न नगरों से प्रशिक्षण लेने युवा आते हैं। लेकिन ब्रज मंडल के युवा नहीं आते।

उन्होंने बताया कि बॉलीवुड में आज भी केवल बांसुरी या गिटार ही पसंद किए जा रहे हैं। गीत फिल्म तो बांसुरी पर ही आधारित थी। इसके बावजूद बांसुरी वादकों की संख्या नहीं बढ़ रही है।

एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि म्यूजिक थैरेपी को भारत के कलाकार समझना नहीं चाहते, जबकि यह विदेशों में काफी लोकप्रिय हो रही है। वे जापान आदि कई देशों में भी बांसुरी वादन कर चुके हैं, जिसे वहां के श्रोताओं ने काफी पसंद किया है।

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