नैनीताल पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है
यहां शाम पेड़ों से झांकती है, शर्माती है। रात ढलने पर भी इसकी सुंदरता कम नहीं होती। सूर्यास्त के बाद बिजली के बल्बों के प्रकाश से झूम उठता है प्रकृति की गोद में बसा खूबसूरत नैनीताल शहर..
पहाड़ों से घिरा खूबसूरत शहर
पहाड़ इसके साथी हैं, जहां जीवन बसता है। यही नैनीताल की शान भी है। डेढ़ सदी से ऊपर हो गई है शहर की उम्र, मगर इसके आभामंडल की चमक फीकी नहीं पड़ी है। कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोलविद प्रोफेसर जीएलशाह कहते हैं, 'अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में नैनीताल की गिनती देश के साफ-सुथरे शहरों में होती थी, पर अब जैसा कि बाकी शहरों में हो रहा है मानवीकृत दिक्कतें हैं। मुझे लगता है कि शहर के विकास के लिए जरूरी है कि नैनी झील के संरक्षण के लिए एक इंटीग्रेटेड प्रोग्राम बनाया जाए। निर्माण कायरें पर पाबंदी लगे और यहां की झील संरक्षण की जरूरत को प्राथमिकताओं में रखा जाए।'
बॉलीवुड से है गहरा नाता
हर पहर एक नया श्रृंगार करता है यह शहर। बॉलीवुड के कई यादगार गीतों की शूटिंग हुई है यहां। वर्ष 1964 की ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म 'शगुन' का गीत 'पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा हो' या 1971 में आई फिल्म 'कटी पतंग' का गाना 'जिस गली में तेरा घर न हो बालमा..' इनकी शूटिंग यहीं हुई थी। यहां कई फिल्मों की शूटिंग हुई, जैसे-'मधुमति', 'हुकूमत', 'मासूम, 'अनीता' आदि। फिल्में और भी हैं, अतीत की यादें और भी हैं, पर हर शहर की तरह यह शहर भी यथार्थ में जीता है और यादें इसके साथ चलती रहती हैं।
नगनीताल बना नैनीताल
प्रो. जीएल साह के मुताबिक तो कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल 1820 में नैनीताल आए थे। 1823 में इंग्लैंड सरकार को भेजी रिपोर्ट में उन्होंने इस स्थान का नाम 'नगनीताल' लिखा। इसके बाद 18 नवंबर, 1841 को कमिश्नर पी बैरन दोस्तों के साथ आए और उसी साल बैरन ने शहर की लीज के लिए आवेदन किया। 1842 में बैरन जब दोबारा आए, तब सूखाताल झील में बर्फ जमी हुई थी। बैरन को शहर की खूबसूरती भा गई। कई कोशिशों के बाद पी बैरन ने झील अपने नाम करा ली और 1845 से कमिश्नर ट्रेल के नगनीताल यानी आज के नैनीताल में बसावट शुरू हुई। गवर्नर के पास म्यूनिसिपल कमेटी के लिए आवेदन पत्र भेजा गया। तब साह परिवार यहां के निवासी थे और इसी दौर में शहर के मोतीराम साह ने मल्लीताल बाजार (आज का समृद्ध और सबसे भीड़भाड़ वाला इलाका) की शुरुआत की।
मालरोड पर फैशन की कैटवॉक
कंक्रीट और डामर से तैयार सडक़ को कभी खुद की शान पर इतराते हुए देखा है। नैनीताल आएं तो इस बात को महसूस कर सकते हैं। नैनीताल के दो छोर हैं-तल्लीताल और मल्लीताल। इनके बीच की दूरी है महज दो किलोमीटर। इस दूरी को नापने के लिए मालरोड बनाया गया। यह ठीक झील के बगल से गुजरती सर्पीले आकार की सडक़ है, जिसके दो भाग हैं। एक को नाम मिला अपर मालरोड और दूसरे को लोअर मालरोड। नैनीताल के जानकार गंगा प्रसाद साह बताते हैं, '1845-46 में अपर और लोअर मालरोड बनने के बाद इनका रुतबा तय किया गया। लोअर को उन मजदूरों के चलने के लिए छोड़ा गया, जो पीठ पर बोझ को लादकर अंग्रेजों का सामान ढोते थे और अपर मालरोड अंग्रेजों की शान के लिए बनी। इस रोड पर घोड़ों पर सवार ब्रिटिशर्स हाथ में चाबुक लेकर निकलते थे। किसी को रोड पर चलने की इजाजत नहीं थी। रुतबा तब का था, जो आज भी कायम है। हां, अब नजाकत थोड़ी बदल गई है। अब लोअर मालरोड के हिस्से गाडि़यों का दबाव है तो अपर मालरोड पर चलता है देश-दुनिया के फैशन का कैटवॉक। पर्यटन के इस मौसम में अपर मालरोड की भीड़ और फैशन का संसार खुद-ब-खुद इस बात की तस्दीक करता।
छोलिया नृत्य से होगा खैरमकदम
अतीत गवाह रहा है, धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सवों को संजोने की जो परंपरा नैनीताल में जन्मी, उसका निर्वहन किया यहां बसे लोगों ने। इतिहासकार डॉ. अजय रावत बताते हैं,'शहर में अधिकतर लोग अल्मोड़ा से आकर बसे हैं। इसलिए वहां की कुमाऊंनी बोली तथा रहन-सहन आम जनजीवन का हिस्सा बन गया है।' कुमाऊंनी होली, नंदा देवी महोत्सव के अलावा तमाम उत्सवों के माध्यम से कुमाऊं की लोक संस्कृति, लोककला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में नैनीताल का बड़ा योगदान है। 'नंदा देवी महोत्सव' के अलावा 'फागोत्सव', 'रामलीला मंचन', 'दुर्गा महोत्सव' भी यहां की पहचान हैं। यही नहीं, जब नैनीताल में पर्यटन सीजन की शुरुआत हो तो फिर यहां का मशहूर छोलिया नृत्य पर्यटकों का खैरमकदम करता है।
एक मैदान
आधे हिस्से में गाडि़यां, आधे में बारोमास खेल! खेल के लिए सिर्फ एक मैदान। उसी में पार्किंग और उसी में क्ति्रकेट, फुटबॉल, बास्केटबॉल। 'फ्लैट्स' के नाम से मल्लीताल में बना यह मैदान ठीक झील के किनारे है, लेकिन कमाल देखिए। इस मैदान ने बड़े-बड़े खिलाड़ी दिए हैं। हॉकी में ओलंपिक खेलने वाले सैय्यद अली हों या राजेंद्र रावत। क्ति्रकेट तो जैसे यहां के सबसे खास खेल में शुमार हो चुका है। जिला क्त्रीड़ा संघ के अधीन चलने वाले फ्लैट्स मैदान में बारोमास (12 महीने) क्ति्रकेट के साथ-साथ फुटबाल भी खेलते हैं। इस मैदान में अखिल भारतीय, राज्यस्तरीय तथा स्थानीय स्तर के क्ति्रकेट, फुटबॉल टूर्नामेंट होते हैं। देश की सबसे पुराने हॉकी प्रतियोगिता में शुमार 'ट्रेड्स कप' पिछले 50 साल से अधिक समय से अनवरत हो रहा है। 'मोदी कप' 'हॉकी टूर्नामेंट', 'लैंडो लीग फुटबॉल', 'रामपुर कप फुटबॉल' सबसे पुराने टूर्नामेंट में से हैं। अंग्रेजी दौर में फ्लैट्स में पोलो खेला जाता था। पर्यटन सीजन की शुरुआत यानी अप्रैल से इस मैदान का आधा हिस्सा पार्किंग के लिए आरक्षित कर लिया जाता है, मगर इससे खेलों पर कोई फर्क नहीं पड़ता।