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इस रहस्यमयी स्थान पर आज भी रास रचाने आते हैं राधा-कृष्ण

मान्यता है कि निधिवन में आज भी हर रात कृष्ण गोपियों संग रास रचाते है। यही कारण है की सुबह खुलने वाले निधिवन को संध्या आरती के पश्चात बंद कर दिया जाता है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 23 Aug 2016 11:08 AM (IST)Updated: Wed, 24 Aug 2016 02:12 PM (IST)
इस रहस्यमयी स्थान पर आज भी रास रचाने आते हैं राधा-कृष्ण
इस रहस्यमयी स्थान पर आज भी रास रचाने आते हैं राधा-कृष्ण

भारत के हर स्थान में छिपा है उसका एक अतीत जो अपनी कहानी बयां करता है। इन धार्मिक जगहों में छुपे ये राज लोगों को भगवान का अस्तित्व मानने पर मजबूर करते हैं। ऐसी ही जगहों में से एक है धार्मिक नगर वृंदावन में मौजूद निधिवन। ये स्थान बेहद पवित्र, धार्मिकऔर रहस्यमयी है। लेकिन आज हम आपको बताते हैं कि ऐसा कौन सा रहस्य है जो इस जगह को खास बनाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि विदेशी पर्यटक भी इस जगह की ओर खिंचे चले आते हैं। मान्यता है कि निधिवन में आज भी हर रात कृष्ण गोपियों संग रास रचाते है। यही कारण है की सुबह खुलने वाले निधिवन को संध्या आरती के पश्चात बंद कर दिया जाता है। उसके बाद वहां कोई नहीं रहता है यहां तक कि निधिवन में दिन में रहने वाले पशु-पक्षी भी संध्या होते ही निधिवन को छोड़कर चले जाते है।

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रंग महल में सजती है सेज

निधिवन के अंदर ही है 'रंग महल' जिसके बारे में मान्यता है की रोज रात यहां पर राधा और कन्हैया आकर रास रचाते हैं। रंग महल में राधा और कन्हैया के लिए रखे गए चंदन की पलंग को शाम सात बजे के पहले सजा दिया जाता है। पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है। सुबह पांच बजे जब 'रंग महल' का पट खुलता है तो बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली, दातुन कुची हुई और पान खाया हुआ मिलता है। रंगमहल में भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ाते है और प्रसाद स्वरुप उन्हें भी श्रृंगार का सामान मिलता है।

जो भी देखता है रासलीला हो जाता है पागल

वैसे तो शाम होते ही निधि वन बंद हो जाता है और सब लोग यहां से चले जाते है। लेकिन फिर भी यदि कोई छुपकर रासलीला देखने की कोशिश करता है तो वह अंधा, गूंगा, बहरा, पागल और उन्मादी हो जाता है ताकि वह इस रासलीला के बारे में किसी को बता ना सके। इसी कारण रात्रि 8 बजे के बाद पशु-पक्षी, परिसर में दिनभर दिखाई देने वाले बन्दर, भक्त, पुजारी इत्यादि सभी यहां से चले जाते हैं और परिसर के मुख्यद्वार पर ताला लगा दिया जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां जो भी रात को रुक जाता है वह सांसारिक बन्धन से मुक्त हो जाता है।

करीब 10 वर्ष पूर्व एक ऐसा ही वाक्या यहां हुआ था, जब जयपुर से आया एक कृष्ण भक्त रास लीला देखने के लिए निधिवन में छुपकर बैठ गया। जब सुबह निधि वन के गेट खुले तो वो बेहोश अवस्था में मिला, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका था। ऐसे अनेकों किस्से यहां के लोग बताते है। ऐसे ही एक अन्य व्यक्ति थे पागल बाबा जिनकी समाधि भी निधि वन में बनी हुई है। उनके बारे में भी कहा जाता है की उन्होंने भी एक बार निधि वन में छुपकर रास लीला देखने की कोशिश की थी। जिससे वो पागल हो गए थे। चूंकि वो कृष्ण के अनन्य भक्त थे इसलिए उनकी मृत्यु के पश्चात मंदिर कमेटी ने निधिवन में ही उनकी समाधि बनवा दी।

पेड़ बनते है गोपियां

लगभग दो ढ़ाई एकड़ क्षेत्रफल में फैले निधिवन के वृक्षों की खासियत यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे तथा इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत होते हैं। यहां लगे तुलसी के पेड़ जोड़े में हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर तुलसी के पेड़ में बदल जाती हैं। साथ ही एक अन्य मान्यता यह भी है की इस वन में लगी तुलसी की कोई भी एक डंडी नहीं ले जा सकता है। लोग बताते हैं कि जो लोग भी ले गए वो किसी न किसी आपदा का शिकार हो गए। इसलिए कोई भी इन्हें नहीं छूता।

वन के आसपास के मकानों में नही है खिड़कियां

वन के आसपास बने मकानों में खिड़कियां नहीं हैं। यहां के निवासी बताते हैं कि शाम सात बजे के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता। जिन लोगों ने देखने का प्रयास किया या तो अंधे हो गए या फिर उनके ऊपर दैवी आपदा आ गई। जिन मकानों में खिड़कियां हैं भी, उनके घर के लोग शाम सात बजे मंदिर की आरती का घंटा बजते ही बंद कर लेते हैं। कुछ लोगों ने तो अपनी खिड़कियों को ईंटों से बंद भी करवा दिया है।

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