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हमें प्रयास करना चाहिए कि हमारे जीवन में प्रेम की कमी न हो

ऐसा प्राय: कहा जाता है कि मनुष्य अपने जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। संसार का कोई भी जानवर अपने शरीर का नुकसान नहीं करता, लेकिन मनुष्य अपने ही शरीर को अपने ही नाखूनों से क्षतविक्षत कर लेता है और फिर उसके दर्द से कराहने लगता है। मनुष्य जैसा अविवेकी

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 23 Feb 2015 11:00 AM (IST)Updated: Mon, 23 Feb 2015 11:07 AM (IST)
हमें प्रयास करना चाहिए कि हमारे जीवन में प्रेम की कमी न हो

ऐसा प्राय: कहा जाता है कि मनुष्य अपने जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। संसार का कोई भी जानवर अपने शरीर का नुकसान नहीं करता, लेकिन मनुष्य अपने ही शरीर को अपने ही नाखूनों से क्षतविक्षत कर लेता है और फिर उसके दर्द से कराहने लगता है। मनुष्य जैसा अविवेकी प्राणी खोजना मुश्किल है। ऐसा इसलिए, क्योंकि मनुष्य केवल अहंकार में जीता है।

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वह प्रेम कर सकता है, लेकिन अहंकार के कारण वह किसी से प्रेम नहीं कर सकता। घृणा, ईष्र्या और द्वेष में आसानी फंस जाता है। ऐसा लगता है कि उसके अंदर का रस सूख गया है। कोई दूसरा अगर उसे क्षति पहुंचाता है तो यह बात समझ में आती है, लेकिन जब वह स्वयं अपने सुंदर शरीर को रौंदने लगता है, उसका नाश करने लगता है तो बड़ा आश्चर्य होता है।

एक कहानी है। एक दिन किसी होटल में दो बुजुर्ग पति-पत्नी खाना खाने गए। खाना आया। पहले पति ने खाना शुरू किया और बूढ़ी औरत आंचल से पंखा झेलने लगी। थोड़ी देर बाद पत्नी खाना खाने लगी और पति रूमाल से मक्खी उड़ाने लगा। दूसरी टेबल पर कुछ लोग और बैठे थे। लोगों ने देखा कि दोनों में कितना प्यार है। इस उम्र में कितने प्यार से दोनों एक-दूसरे को खाते समय पंखा झेल रहे हैं। यह अच्छा दृश्य देखकर बगल के टेबल पर बैठे एक व्यक्ति ने पूछा, दादाजी! इस उम्र में भी आप दोनों इतने प्यार से कैसे रह लेते हैं। यह सुनकर दादाजी ने कहा कैसे बेटे। फिर उस व्यक्ति ने कहा कि आप खाना खा रहे थे तो दादी पंखा झेल रही थीं और दादी खाना खा रही थीं तो आप पंखा झेल रहे थे। यह सुनकर वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि दरअसल इसमें प्रेम की कोई बात नहीं है। हम दोनों के पास दांत का एक ही सेट है। इसीलिए बारी-बारी से खाना खाता हूं। सच पूछा जाए तो यही जीवन का रस है। जब तक जीवन में रस बना रहता है तब तक जीवन में फूल खिलते रहते हैं। रस के सूखते ही जीवन नष्ट हो जाता है। हमें प्रयास करना है कि हमारे जीवन में प्रेम की कमी न हो, क्योंकि प्रेम ही है जो मनुष्य को जीवित रखता है। इस संसार को जब कोई व्यक्ति प्रेम कर सकता है तो आप क्यों नहीं कर सकते हो। आपका मन विषाद और अप्रेम से घिरा है, जिस कारण आप किसी से प्रेम नहीं कर सकते। आपका मन इतना कुरूप हो गया है कि आप अपनी पत्नी और बच्चों से भी प्रेम नहीं कर सकते हो।


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