Move to Jagran APP

सत्य सदा मौन में ही मुखर होता

हम प्राय: सत्संग का अर्थ किसी संत या महापुरुष की जनसभा में जाकर प्रवचन श्रवण, संकीर्तन आदि में शामिल होने से करते हैं। कारण यह कि हमारी धारणा होती है कि संतों-महात्माओं को सत्य की प्राप्ति हो चुकी होती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 21 Nov 2014 10:44 AM (IST)Updated: Fri, 21 Nov 2014 10:53 AM (IST)
सत्य सदा मौन में ही मुखर होता

हम प्राय: सत्संग का अर्थ किसी संत या महापुरुष की जनसभा में जाकर प्रवचन श्रवण, संकीर्तन आदि में शामिल होने से करते हैं। कारण यह कि हमारी धारणा होती है कि संतों-महात्माओं को सत्य की प्राप्ति हो चुकी होती है।

loksabha election banner

इस कारण भक्तों को यह विश्वास होता है कि परमात्मा का साक्षात्कार कर चुके अथवा ज्ञान पाए संतों की शरण में जाने पर वह हमारा भी साक्षात्कार सत्य से करा देंगे या हमारे कान में कोई मंत्रदि फूंक देंगे और हमें भी सत्य की उपलब्धि हो जाएगी। जी नहीं, ऐसे ख्याल नितांत भ्रामक हैं। कारण यह कि किसी मंत्र की पुनरावृत्ति हमें तंद्रा में अवश्य ले जा सकती है, किंतु हमें सत्य की अनुभूति नहीं करा सकती। कारण यह कि हमें वही चीज कोई दे सकता है, जो हमसे पृथक हो जिसे हमने आज तक कभी खोया ही नहीं, उसे कोई अन्य दे भी कैसे सकता है?

सद्गुरु की सदा यही विवशता रही है। इसीलिए हमें ही सद्गुरु की तलाश नहीं होती, बल्कि सद्गुरु को भी योग्य शिष्यों की तलाश होती है ताकि जो उसने जाना, वह उसे बांट सके। हमें सद्गुरु की तलाश कर निरहंकार भाव से विचारशून्य दशा में शरण में जाना चाहिए। सद्गुरु वही है जिसे परमात्मा की प्रतीति हो गई हो। उसकी शरणागति हमारी सबसे बड़ी सफलता है। सद्गुरु हमारे और परमात्मा के मध्य सेतु का काम कर सकता है। उसे सत्य का पता है और हमें सत्य का पता नहीं। इसलिए वह चांद की ओर उठने वाली उंगली की तरह उस परम की ओर इशारे कर सकता है। हमें उसकी उठी हुई उंगली को पकडऩे की बजाय उसके इशारे को समझते हुए चांद (सत्य) की ओर दृष्टि डालनी होगी। उसके संग निर्विचार, अहंकाररहित व पूर्ण समर्पण भाव से बैठना होगा। यही हमारी सबसे बड़ी तैयारी साबित होगी। कारण यह कि तभी हम उसके इशारे को समझ सकते हैं। हमें खाली पात्र की तरह उसके निकट बैठना होगा तभी उसका इशारा हमारे भीतर आश्रय पा सकेगा।

स्मरण रहे कि जिन्होंने सत्य को पाया है वे जानते हैं कि सत्य को शब्दों में बांधना नामुमकिन है। इसलिए वह मौन में भी हमें इशारा कर सकता है। कारण यह कि सत्य सदा मौन में ही मुखर होता है। मौन में ही ध्यान व समाधि की सुवास उठती व फैलती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.