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सत्य और असत्य

जैसे ज्ञान है वैसे ही अज्ञान है। ज्ञान दृष्टि से मनुष्य ज्ञान जगत अथवा दृश्य जगत से संबंधित बातों को जान सकता है। इसी तरह मनुष्य अज्ञान दृष्टि से अज्ञान के विविध पहलुओं को जान सकता है। जिन दो आंखों से हम परिचित हैं, जिन दो आंखों से हम देखते हैं, जिन दो चक्षुओं को हम जानते हैं, वह अज्ञानता के चक्षु हैं। अज्ञान की स्थिति में ये दो आंखें काम करती है

By Edited By: Published: Sat, 19 Apr 2014 11:10 AM (IST)Updated: Sat, 19 Apr 2014 11:16 AM (IST)
सत्य और असत्य

जैसे ज्ञान है वैसे ही अज्ञान है। ज्ञान दृष्टि से मनुष्य ज्ञान जगत अथवा दृश्य जगत से संबंधित बातों को जान सकता है। इसी तरह मनुष्य अज्ञान दृष्टि से अज्ञान के विविध पहलुओं को जान सकता है।
जिन दो आंखों से हम परिचित हैं, जिन दो आंखों से हम देखते हैं, जिन दो चक्षुओं को हम जानते हैं, वह अज्ञानता के चक्षु हैं। अज्ञान की स्थिति में ये दो आंखें काम करती हैं और ज्ञान की दृष्टि बंद रहती है और यह भी सत्य है कि जब ज्ञान दृष्टि खुल जाती है तब अज्ञान दृष्टि बंद हो जाती है। जिस तरह अज्ञान दृष्टि बाहर की ओर काम करती है, उसी प्रकार ज्ञान दृष्टि भीतर की ओर काम करती है। दोनों में क्रिया एक ही तरह है। दोनों में अंतर यह है कि एक जहां हमें वाह्य जगत का बोध कराती है और तमाम तरह के भौतिक अथवा सांसारिक अनुभव देती है वही दूसरी दृष्टि या कहें ज्ञान की दृष्टि हमें आंतरिक अथवा पारलौकिक जगत का बोध कराती है। हमारा जीवन इन दोनों का ही मिलन बिंदु है। इसलिए जरूरी है कि हम अपने दोनों ही ज्ञान चक्षुओं से अपने वास्तविक जीवन का अहसास करें और जीवन की पूर्णता हासिल करें। यह सच है कि ज्ञान और विज्ञान के बारे में आंखों से हम सीमित जानकारी हासिल कर सकते हैं, लेकिन इन आंखों से परे एक अदृश्य आंख भी है।
इस आंख को तीसरी आंख या त्रिनेत्र कहते हैं जिसे ज्ञानमय दृष्टि कहा जाता है। अज्ञानमय दृष्टि की तरह तीसरी आंख भी मनुष्य में विद्यमान है। यह तीसरी आंख दृश्य जगत का अदृश्य जगत के साथ संबंध स्थापित करती है। तीसरा नेत्र भौतिक-अज्ञानमय जगत के तत्वों से अलग हटकर सूक्ष्म जगत की सूक्ष्म गतिविधियों का अनुभव कराता है। यही आंख दिव्य भाव में आत्मलीन कर परम सत्ता का साक्षात्कार कराती है। तीसरी आंख के खुलने के बाद ज्ञान शक्ति और अज्ञान शक्ति दोनों ही उस मनुष्य के अधिकार में होती है। इस स्थिति को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति संसार की वास्तविकताओं को जान लेता है, समझ लेता है।
सत्य और असत्य क्या है, इन सबके बारे में वह सब कुछ जान लेता है। त्रिनेत्र को जाग्रत करने वाला व्यक्ति जो भी कार्य-व्यवहार करता है, वह नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों की कसौटी के पूर्णत: अनुकूल होता है।


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