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पहले जीवन के उद्देश्य को तय करें फिर प्रयास प्रारंभ करें

जीवन में यशस्वी वही बनता है जो किसी क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करता है। सामान्य लोगों को कोई नहीं जानता। जीवन का उद्देश्य ही यही है कि परमात्मा पर पूर्ण आस्था रखते हुए उनके आशीर्वाद से इस संसार में नैतिक जीवन जिएं और अपने कर्मो की सुगंध से समाज को सुगंधित करते रहें। जो व्यक्ति जीवन के इस रहस्य को जान लेता है उसका जीवन रागमय, प्रे

By Edited By: Published: Tue, 22 Apr 2014 11:56 AM (IST)Updated: Tue, 22 Apr 2014 11:57 AM (IST)
पहले जीवन के उद्देश्य को तय करें फिर प्रयास प्रारंभ करें

जीवन में यशस्वी वही बनता है जो किसी क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करता है। सामान्य लोगों को कोई नहीं जानता। जीवन का उद्देश्य ही यही है कि परमात्मा पर पूर्ण आस्था रखते हुए उनके आशीर्वाद से इस संसार में नैतिक जीवन जिएं और अपने कर्मो की सुगंध से समाज को सुगंधित करते रहें। जो व्यक्ति जीवन के इस रहस्य को जान लेता है उसका जीवन रागमय, प्रेममय, करुणामय बन जाता है और वह समाज में यश प्राप्त करता है। विशेषकर बच्चों के जीवन का निर्माण करना महत्वपूर्ण होता है।
विदेशों में ऐसा चलन है कि बच्चों की जांच प्राइमरी क्लास से ही होती रहती है और उसी के आधार पर देखा जाता है कि बच्चों का रुझान विज्ञान, साहित्य, संगीत या खेल की ओर है या किसी और नई दिशा की खोज में बच्चा निकलना चाहता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि संसार में जीवन का कोई ऐसा मार्ग नहीं है, जो सफलता के शिखर तक नहीं जाता हो। सिर्फ पढ़ाई ही जीवन में सफलता पाने का पैमाना नहीं है। खेल, संगीत, चित्रकारी, मूर्तिकारी में भी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की जा सकती है। केवल उस क्षेत्र में विशिष्ट बनने की आवश्यकता है। अगर हम अपने संकल्प के प्रति पूर्ण आश्वस्त हैं तो सफलता निश्चय ही मिलती है। फुटबॉल के मैदान में कोई दौड़ता रहे तो वह गोल नहीं कर पाता, उसे गोल की ओर दौड़ना पड़ता है। इसलिए हमारे जीवन में केवल पढ़ना ही महत्वपूर्ण नहीं है, क्या और किस दिशा में, किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पढ़ाई हो रही है, यह महत्वपूर्ण है। इसलिए पहले जीवन के उद्देश्य को तय करें और फिर प्रयास प्रारंभ करें। अपने उद्देश्य को बार-बार बदलने वाले मंजिल प्राप्त नहीं कर पाते। पुरानी कहावत है कि शिष्य और पुत्र से क्रमश: गुरु और पिता जब हारते हैं तब खुशी होती है। मनुष्य किसी से हारे तो वह दुखी हो जाता है लेकिन पिता अगर पुत्र से हारता है, गुरु अगर शिष्य से हारता है तो उसे हर्ष होता है। भारत का एक सपूत इंग्लैड पढ़ने गया। वहां पर वह एक विश्वविद्यालय में शैक्षिक क्षेत्र में विश्वरिकार्ड कायम कर भारत लौट आया और दिल्ली में ऊंचे ओहदे पर पदस्थापित हुआ। एक अर्से बाद उनका बेटा भी वहीं पढ़ने गया। उसने अपने पिता के रिकार्ड को तोड़ दिया। यह सूचना दिल्ली में उन्हें दी गई। उन्होंने सगर्व उत्तर दिया कि कोई बात नहीं, वह मेरा पुत्र है। पुत्र से हारने पर पिता को दुख नहीं होता, खुशी होती है।


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