परमतत्व से ब्रह्मंड को शक्ति प्राप्त होती है
पहले ब्रह्मांड की परा शक्ति को समझ लें। परा का अर्थ होता है ब्रह्म विद्या और आध्यात्मिक तथ्यों का विवेचन करने वाला। ब्रह्मंड का अर्थ यही लगाया जाता है कि जहां दृश्य-अदृश्य जीवों और प्राण-ऊर्जा का संचरण होता है। इसके विस्तार की कल्पना असंभव जान पड़ती है, लेकिन कुछ लोगों
पहले ब्रह्मांड की परा शक्ति को समझ लें। परा का अर्थ होता है ब्रह्म विद्या और आध्यात्मिक तथ्यों का विवेचन करने वाला। ब्रह्मंड का अर्थ यही लगाया जाता है कि जहां दृश्य-अदृश्य जीवों और प्राण-ऊर्जा का संचरण होता है। इसके विस्तार की कल्पना असंभव जान पड़ती है, लेकिन कुछ लोगों ने अनुमान लगाया है कि इस समस्त ब्रह्मंड का क्षेत्रफल 50 करोड़ प्रकाशवर्ष होना चाहिए।
संपूर्ण ब्रह्मंड को समझने के लिए बहुत दिमाग लगाने पर थोड़ी बहुत बात समझ में आ सकती है, लेकिन इस विराट ब्रह्मंड के किसी एक अंश को अगर समझा जाए तो उसी के अनुसार संपूर्ण ब्रह्मंड की कल्पना की जा सकती है। पहले अंश को समझें तब अंशी को समझे। जिस मूल उद्गम से यह अंश पैदा हुआ है, इसी के द्वारा अंशी तक पहुंचने का प्रयास किया जा सकता है।
वैसे ब्रह्मांड का अर्थ है-जहां से अंतरिक्ष की उत्पत्ति हुई है और जहां से रेडियो सक्रिय किरणों वायुमंडल को प्रभावित करती हैं, जो सब का आदि कारण हो, जहां से ब्रह्म की उत्पत्ति हुई हो और जो संपूर्ण विश्व को प्राणवायु संचारित करता हो। उसी को लौकिकता के आधार पर ब्रह्मंड कहा जाता है। यहां इस प्रश्न पर भी विचार करना चाहिए कि इस ब्रह्मंड को शक्ति प्रदान करने वाली दिव्यशक्ति कौन है? अध्यात्म में उसी दिव्यशक्ति को दिव्यलोक कहा जाता है, जहां तत्वरूप में परमात्मा का मूलस्थान माना जाता है। उसी परमतत्व से ब्रह्मंड को शक्ति प्राप्त होती है। भारत के आध्यात्मिक संत उसी परमलोक में जाकर परमानंद की अनुभूति प्राप्त करना चाहते हैं। स्थूल शरीरधारी जीव शरीर छोड़कर उसी दिव्यलोक में जाकर ब्रह्मतत्व में विलीन हो जाते हैं। इसीलिए इस रहस्यमय दिव्यलोक को 'नेतिÓ कहा जाता है। जिसका कोई अंत न हो। यह तो ब्रह्मंड की बात हुई। विज्ञान में इसी ब्रह्मंड को कॉस्मोलॉजी साइंस के नाम से जानते हैं और इसी से कॉस्मिक डस्ट या धूल की चर्चा विज्ञान में होती है। इसी को चिदाकाश भी कहा जाता है। यह कॉस्मिक धूल कहां से आती है, विज्ञान इसका उत्तर देने में असमर्थ है, लेकिन अध्यात्म कहता है कि यह कॉस्मिक धूल दिव्यलोक से आती है।