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प्रतिभा साहस, शौर्य, समझदारी, जिम्मेदारी और ईमानदारी का प्रचंड उफान है

प्रतिभावान व्यक्ति ही समस्त व्यवस्था तंत्र, समाज और राष्ट्र को दिशा देते हैं। प्रतिभावान हमारे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 22 Oct 2016 09:15 AM (IST)Updated: Sat, 22 Oct 2016 09:19 AM (IST)
प्रतिभा साहस, शौर्य, समझदारी, जिम्मेदारी और ईमानदारी का प्रचंड उफान है
प्रतिभा साहस, शौर्य, समझदारी, जिम्मेदारी और ईमानदारी का प्रचंड उफान है

प्रतिभा व्यवस्था का प्राण है। कोई भी व्यवस्था चाहे वह समाज व्यवस्था हो, राजनीतिक व्यवस्था, धार्मिक हो या फिर वर्तमान में प्रचलित कॉरपोरेट व्यवस्था हो, सभी के सुसंचालन के लिए एक कुशल और योग्य व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है। जिस व्यक्ति में अपने अंतर्गत आने वाली किसी भी जिम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए सही समझदारी, साहस और ईमानदारी से कार्य करने की क्षमता होती है उसे ही प्रतिभावान कहते हैं।
प्रतिभा अपनी नैसर्गिकता या उपलब्ध अनुभवकुशलता से अनेक प्रकार की रचनात्मकता को जन्म देती है। वह कल्याणकारी विचारों को जन्म देती है और वह अपनी अनोखी योजना से व्यवस्था को एक नई पहचान देती है। प्रतिभाओं के नियमन और सुनियोजन में व्यवस्था का सौंदर्य झलकता-निखरता है। प्रतिभाएं अपनी बौद्धिक कुशलता, रचनात्मकता और सृजनशीलता से व्यवस्था में प्राण फूंकती हैं। व्यवस्था की संरचना, ढांचा और आधार प्रतिभा द्वारा ही विनिर्मित होते हैं। व्यवस्था और प्रतिभा, दोनों एक-दूसरे पर आधारित हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बगैर दूसरे का अस्तित्व नहीं है। यदि केवल व्यवस्था हो और संचालन करने वाली कोई कुशल प्रतिभा न हो तो व्यवस्था लड़खड़ाएगी और यदि केवल प्रतिभा हो और उनके सामने अपनी कुशलता को क्रियान्वित करने और निखारने के लिए कोई कार्यक्षेत्र न हो तो वह भी एकांगी और निष्क्रिय हो जाएगी। जिसे असंभव कहा जाता है उसे संभव कर देने की क्षमता वाले व्यक्ति को ही प्रतिभावान कहा जाता है। प्रतिभावान के लिए असंभव शब्द नहीं होता है।
प्रतिभा किसी व्यक्ति का नाम नहीं है, बल्कि साहस, शौर्य, समझदारी, जिम्मेदारी और ईमानदारी का प्रचंड उफान है। प्रतिभा जहां होगी, ये सारे अनिवार्य तत्व अपने प्रबलतम और चरम उत्कर्ष पर होंगे। वर्तमान व्यवस्था तंत्र की विडंबना है कि वह न तो प्रतिभाओं का सम्मान करना जानता है और न ही उसे इनका सुनियोजन करना ही आता है। ऐसे में व्यवस्था तंत्र लड़खड़ाएगा, टूटेगा, भटकेगा नहीं तो क्या होगा? यहां यह भी जरूरी है कि प्रतिभावान लोगों को भी अपनी मर्यादा को ध्यान में रखकर अपनी रचनात्मक और सृजनात्मकता से भटकना नहीं चाहिए। प्रतिभावान व्यक्ति ही समस्त व्यवस्था तंत्र, समाज और राष्ट्र को दिशा देते हैं। प्रतिभावान हमारे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं।


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