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ऐसा क्या है, जिसकी हमें परम आवश्यकता है

हम लोग पूरे जीवन में खुशियां तलाशते हैं। बावजूद इसके, हमें वह तृप्ति नहीं मिल पाती, जिसकी हम तलाश करते हैं। वह सुकून हमें नहीं मिल पाता जो हमें आत्म-संतुष्टि दे सके और सार्थकता का अनुभव करा सके। इसके लिए हमें अपनी चाहतों के ढेर में से सही चाहत को

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 27 Jan 2015 10:00 AM (IST)Updated: Tue, 27 Jan 2015 10:04 AM (IST)
ऐसा क्या है, जिसकी हमें परम आवश्यकता है
ऐसा क्या है, जिसकी हमें परम आवश्यकता है

हम लोग पूरे जीवन में खुशियां तलाशते हैं। बावजूद इसके, हमें वह तृप्ति नहीं मिल पाती, जिसकी हम तलाश करते हैं। वह सुकून हमें नहीं मिल पाता जो हमें आत्म-संतुष्टि दे सके और सार्थकता का अनुभव करा सके। इसके लिए हमें अपनी चाहतों के ढेर में से सही चाहत को तलाशना होगा। जो चाहतें हम पूरा करने में लगे हैं, उनके पूरा हो जाने पर क्या हम सतुंष्ट हो जाएंगे या फिर हमारी अतृप्ति बढ़ जाएगी? ऐसा क्या है, जिसकी हमें परम आवश्यकता है, जिसके मिल जाने से हमारी अतृप्ति समाप्त हो सकती है, इस प्रश्न को बार-बार सोचना होगा और सही उत्तर की प्रतीक्षा करनी होगी।

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जीवन प्रबंधन एक ऐसा विषय है, जिसे सीखने की जरूरत हर किसी को है। जिंदगी का हर पल हमें कुछ सिखा कर जाता है, लेकिन यदि हम बिल्कुल भी होश में नहीं हैं तो हम इसका लाभ नहीं ले सकते। यदि आज भी जीने के तौर-तरीके नहीं सीखे गए और इन भूलों को दोहराते रह गए तो आने वाला भविष्य अंधकरामय हो सकता है। निश्चित तौर पर जीवन को संवारने के लिए जीवन की गहराई को समझना जरूरी है और अपनी क्षमताओं को पहचानना जरूरी है। वस्तुत: मानव जीवन के दो पक्ष हैं। एक दृश्य और दूसरा अदृश्य। दृश्य जीवन में हर व्यक्ति का बाहरी रूप, उसका व्यवहार, किए गए कर्म आदि नजर आते हैं। जबकि आंतरिक जीवन में उसके विचार, रुचियां, इच्छाएं और भावनाएं होती हैं, जो दिखाई नहीं पड़तीं, लेकिन व्यक्ति इन्हें महसूस करता है। व्यक्ति जो भी व्यवहार किसी वस्तु के प्रति करता है तो उस वस्तु पर किए गए व्यवहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि उसके अंदर विचार या भावनाएं नहीं होती, लेकिन यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति व्यवहार करता है तो उसकी भावनाएं प्रभावित होती हैं। अच्छा व्यवहार दूसरे व्यक्ति को अपना बना लेता है और बुरा व्यवहार उसकी भावनाओं को बुरी तरह से उद्वेलित कर देता है, जिससे उसकी भावनाएं भी शब्दों में प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं, भले ही पूरी तरह से कह न सके।

भावनाओं की यह पीड़ा ही दूसरे व्यक्ति के लिए संस्कार बन जाती है। यदि हमें अपने इन हिसाब-किताब वाले रिश्तों से मुक्त होना है तो एक उपाय यह है कि हम इन रिश्तों का आदर करते हुए संबंधित व्यक्ति के प्रति अच्छा व्यवहार करें।


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