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मौन का निरंतर अभ्यास करने से शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है

मौन से मन की शक्ति तो बढ़ती ही है, साथ ही तन भी शक्तिशाली होता है। शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 20 Jan 2017 11:21 AM (IST)Updated: Fri, 20 Jan 2017 11:26 AM (IST)
मौन का निरंतर अभ्यास करने से शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है
मौन का निरंतर अभ्यास करने से शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है

मौन एक सच्चा मित्र है, जो कभी धोखा नहीं देता। मौन के बल पर भगवान महावीर और गौतम बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त किया था। महर्षि रमण और चाणक्य भी मौन के महत्व को समझते थे। जाहिर है, जगत में सारे अच्छे विचार मौन से उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शुद्ध और पौष्टिक भोजन और गहरी नींद आवश्यक है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए मौन। जो लोग मौन के महत्व को समझते हैं, वे अपने जीवन में कभी असफल नहीं होते, क्योंकि मौन हजार शब्दों से भी अधिक मूल्यवान होता है। मौन की अहमियत साधना के सभी पंथों में स्वीकारी गई है। मनोवैज्ञानिक और कॅरियर काउंसलर भी स्मरण शक्ति बढ़ाने, एकाग्रता, शांति और सकारात्मक सोच के लिए मौन धारण करने की सलाह देते हैं। एक कंपनी में कार्यस्थल पर ही ‘एक विशेष स्पेस’ का निर्माण किया गया है, जहां पर कर्मचारी काम के दौरान नेचुरल लाइट में एकांत के क्षण बिता सकते हैं। इसके बड़े ही चमत्कारिक परिणाम निकले।
विशेषज्ञों के अनुसार चुप रहने से हमारी संवदेनशीलता, सोच और भावनाओं में चमत्कारिक सकारात्मक परिवर्तन आता है। मौन रहने से दिमाग में सकारात्मक विचार आते हैं। मौन हमें जागरूक और सचेत रहना सिखाता है। मौन से हमारी भावनात्मक गतिविधियां नियंत्रण में रहती हैं। किसी बाहरी चीज से हम प्रभावित नहीं होते। शरीर का सबसे जटिल और ताकतवर हिस्सा दिमाग होता है। जिस तरह से मांसपेशियों को कसरत करने से फायदा पहुंचता है, वैसे दिमाग को मौन से फायदा होता है। इसी तरह दैनिक जीवन में यदि लोग आवश्यकतानुसार बोलें, तो 90 प्रतिशत मतभेद या विवाद स्वयं खत्म हो सकते हैं। कहा भी गया है कि प्रतिक्रिया तभी व्यक्त करें, जब जरूरी हो। व्यर्थ के कामों पर बहस करना, गुस्से से तनावग्रस्त होना और चिंता करने से ब्लड-प्रेशर और डायबिटीज जैसी बीमारियां भी लग सकती हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि वाद-विवाद होने से मन का संतुलन बिगड़ जाता है। इन सभी अनावश्यक बातों में अपनी ऊर्जा न जाया न करें। विशेषज्ञों के अनुसार मौन से अच्छा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। मौन से मन की शक्ति तो बढ़ती ही है, साथ ही तन भी शक्तिशाली होता है। शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती। सारे मानसिक विकार समाप्त होने के साथ ही रात की नींद भी अच्छी आती है। मौन का निरंतर अभ्यास करने से शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है।

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