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वास्तविक सुख तो आत्म-तत्व का साक्षात्कार करना है

संसार का नियम है कि लोग सफलता के साथ चलते हैं और कष्ट के समय साथ छोड़ देते हैं। उनका सारा अपनत्व और ममत्व लुप्त हो जाता है। अधिकतर मामलों में ऐसा देखा गया है कि समाज उन्हीं का साथ देता है जिनके पास पद और प्रतिष्ठा है। वर्तमान समय में पश्चिमी मूल्यों के प्रचलन में आने के फलस्वरूप पवित्र भारत भूमि पर आत्म-साक्षात्कार, साधना और आर्थिक शु

By Edited By: Published: Thu, 10 Jul 2014 04:05 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jul 2014 04:55 PM (IST)
वास्तविक सुख तो आत्म-तत्व का साक्षात्कार करना है
वास्तविक सुख तो आत्म-तत्व का साक्षात्कार करना है

संसार का नियम है कि लोग सफलता के साथ चलते हैं और कष्ट के समय साथ छोड़ देते हैं। उनका सारा अपनत्व और ममत्व लुप्त हो जाता है। अधिकतर मामलों में ऐसा देखा गया है कि समाज उन्हीं का साथ देता है जिनके पास पद और प्रतिष्ठा है। वर्तमान समय में पश्चिमी मूल्यों के प्रचलन में आने के फलस्वरूप पवित्र भारत भूमि पर आत्म-साक्षात्कार, साधना और आर्थिक शुचिता आदि गुणों का निरंतर अभाव होता जा रहा है।
स्वार्थी मनुष्य अपने भोग्य पदार्थो और अवसरों की खोज में लगा रहता है। कभी-कभी तो महत्वपूर्ण पदों पर आसीन प्रतिष्ठित व्यक्ति सीमित स्वार्थो की पूर्ति के लिए इंसाफ की राह से भटक जाते हैं। आगे बढ़ने की चाहत में वे मानवीय मूल्यों को भुला बैठते हैं, जिससे धन-संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा तो प्राप्त हो जाती है, पर उन्होंने क्या खो दिया, उसका आभास उन्हें नहीं होता।
वास्तव में इस संसार में धन, संपत्ति,पद-प्रतिष्ठा, रिश्ते-नाते अल्पकालिक, अस्थिर और मिथ्या हैं। व्यक्ति जिस धन, कीर्ति व मान को सच्चा सुख मान बैठता है, वे सदैव नहीं रहते। ऐसा इसलिए, क्योंकि वास्तविक सुख तो आत्म-तत्व का साक्षात्कार करना है। हमारी भारतीय संस्कृति सदैव आत्म उन्नति का ही सम्मान करती आई है।
मानव जिसके लिए प्रपंच करता है, वे सब यहीं रह जाते हैं। इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति अकेला ही आया है और अकेला ही जाता है। आज हम जिस पद पर आसीन हैं, वहां कल कोई और था और आने वाले समय में कोई और होगा। सभी पदों के साथ भूतपूर्व लग जाया करता है, इसलिए हमारा मूल उद्देश्य मात्र सांसारिक पद पा लेना नहीं होना चाहिए। ईश्वर ने हमें जिस पद पर आसीन किया है, कृतज्ञ भाव से नीतिपूर्ण कार्य करते हुए उसकी गरिमा को बढ़ाना चाहिए, क्योंकि बड़े भाग्य से यह मानव शरीर प्राप्त हुआ है। यह सत्य है कि सच्चाई की राह आसान नहीं होती। व्यक्ति को पग-पग पर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, पर जो भगवान के चरणों में प्रीति रखता है, उसे ही ध्रुव जैसा प्रतिष्ठित पद प्राप्त होता है। एक फकीर जिसे किसी भी वस्तु की कामना नहीं होती, उसका जीवन अत्यंत मस्त और निश्चिंत होता है ।


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