मन पर नियंत्रण बेहद जरूरी है
श्रद्धा रखने वाले, अपनी इंद्रियों पर संयम कर ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। वहीं ज्ञान मिल जाने पर, जल्द ही परम शांति को प्राप्त होते हैं।
श्रद्धावान्ल्लभते
ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
4-39॥
अर्थ : श्रद्धा रखने वाले, अपनी इंद्रियों पर संयम कर ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। वहीं ज्ञान मिल जाने पर, जल्द ही परम शांति को प्राप्त होते हैं।
भावार्थ : यहां श्रीकृष्ण शांति का सूत्र दे रहे हैं। उनके अनुसार, ज्ञान से शांति तो मिलती है, लेकिन ज्ञान पाने के लिए मानना (श्रद्धा) जरूरी है। यानी जानने के लिए मानना आवश्यक है। जब हम गणित के सवालों को हल करते हैं, तब भी हमें उत्तर जानने के लिए शुरुआत में मानना पड़ता है। माना चिडि़यां एक्स हैं। गणितीय सूत्र लगाने के बाद हमें एक्स का मान पता चलता है, तब हम पता लगा पाते हैं कि कितनी चिडि़यां थीं। इसी प्रकार अध्यात्म में भी मानना आवश्यक है, वह चाहे ईश्वर पर श्रद्धा हो या अपने आप पर। जिस पर हमारी श्रद्धा होती है, हमारा लगाव उससे बढ़ जाता है। इस प्रकार हम उसे पूरी तरह से जान सकते हैं। इसी को ज्ञान कहा जाता है। जब हम ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं या जान लेते हैं, तब हमारे भीतर की हलचल समाप्त हो जाती है। हमारे अंदर की जुगुप्सा मिट जाती है और हमें परम शांति का अनुभव होता है।
मन
मन की शक्तियां अनंत हैं। मन शरीर को आत्मा से मिलाने वाला साधन है। इस पर नियंत्रण बेहद जरूरी है। ध्यान योग द्वारा इसे वश में किया जा सकता है। इसे वश में करने के बाद ही आत्मदर्शन संभव हो पाता है।
वचन
कबीर दास कहते हैं कि उचित शब्द के बराबर कोई धन नहीं है। हीरा तो फिर भी पैसा खर्च करने पर मिल जाता है, पर दूसरे को प्रभावित करने वाले शब्द हर कोई नहीं बोल पाता। मधुर और प्रेमपूर्ण वाणी तभी बोली जा सकती है, जब मन साफ हो। अगर मन में कुविचार रखकर बोला जाए, तो सामने वाले पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
कर्म
हर दिन और कार्य की शुरुआत सदा नई उमंग, उत्साह और आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए। व्यक्ति का महत्व उसके नश्वर शरीर से नहीं, उसकी समझ और कर्म से है।