एक सत्य को छिपाने में हमें अनेक झूठ का सहारा लेना पड़ता है
हर व्यक्ति कहता है उसे असत्य से नफरत है। मुझसे सत्य छिपाया नहीं जाता, होता इसके उलटा। पति पत्नी से, मित्र मित्र से, सत्य को छिपाता है।
सत्य साध्य है और असत्य श्रमसाध्य। हम बड़े प्रयास से निरंतर अपने को ढंकते जाते हैं और तब गढ़ते हैं असत्य की प्रतिमा। सत्य शिशु का स्वभाव है। असत्य को ग्रहण करने में उसे बड़ा श्रम करना पड़ता है। एक सत्य को छिपाने में हमें अनेक झूठ का सहारा लेना पड़ता है। शिशु स्वभाव से निश्छल होता है, परंतु हम बड़े श्रम से उसे असत्य सिखाते रहते हैं। हमारी यह मिथ्या धारणा है कि उसे दुनियादार बनाने के लिए असत्य सिखाना जरूरी है। ऐसा करते रहने से परत-दर-परत उसके भीतर का सूर्य ढंकता चला जाता है और वह झूठ के अंधेरे में भटकने के लिए मजबूर हो जाता है।
अबोध बालक शत्रु-मित्र में भेद करना नहीं जानता है। वह दोनों को देखकर मुस्करा देता है और दोनों की गोद में जाने के लिए आतुर दिखायी देता है। हम उसके मन में भेद पैदा करते हैं। बालक के कोमल मन पर हम बड़े सलीके से असत्य के विष का लेप करते रहते हैं। वह तो निरंतर समभाव में रहता है। उसके भीतर नफरत की दीवार हम खड़ी करते हैं। बालक दरिद्र- संपन्न, कुलीन-अकुलीन, धर्म-पंथ, स्पृश्य-अस्पृश्य में भेद नहीं देखता। हम उसके सामने वर्जनाओं की बाधाएं खड़ी कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप वह सत्य के मार्ग से भटक जाता है। यही उसे हैवान बना देती है।
हर व्यक्ति दावे के साथ कहता है कि उसे असत्य से नफरत है। मुझसे सत्य छिपाया नहीं जाता, परंतु होता है इसके उलटा। पति पत्नी से, मित्र मित्र से, सहयोगी अधिकारी से सत्य को छिपाता है। जब हम पग-पग पर असत्य का व्यवहार करेंगे तो सत्य का दीदार कैसे होगा? असत्य हमारे भीतर इतना गहरा पैठ गया है कि धुरंधर तत्वचिंतक भी दोहरी मान्यताएं ढोते रहते हैं। सत्य का सौरभ पाने के लिए मन की कुटिलताएं और चित्त की काई को साधना के मंजन से साफ करना होगा। सत्य के अमूल्य रत्न को पाने के लिए हमें कुछ मूल्य तो चुकाना ही होगा। वह मूल्य चुकाया था हमारे ऋषियों ने। वे सत्य की खोज में जंगलों और पहाड़ों में अखंड साधना करते रहे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ज्ञान की खोज में भारत आया था। सत्य की तलाश में वह गुरुकुलों और आश्रमों में गया। यहां से योग्य शिष्यों को लेकर चीन वापस गया और वहां सत्य के ज्ञान का बीज बोया। ह्वेनसांग भारतीय धर्म-दर्शन की कुछ पांडुलिपियों को साथ ले गया, जिनमें साधना का सार था। इस प्रकार विश्व में पहुंचा भारत का ज्ञान-सूर्य।