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मनुष्य संघर्ष की आंच में तपकर मनुष्य बनता है

संघर्ष जीवन का अवश्यंभावी तत्व है। जहां संघर्ष नहीं, वहां जीवन का आनंद नहीं रोजमर्रा की सुविधाओं में हम इतने लिप्त हैं कि हल्का सा अभाव हमारे संघर्ष की प्रक्रिया को जटिल बना देता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 30 Jan 2015 09:29 AM (IST)Updated: Fri, 30 Jan 2015 09:36 AM (IST)
मनुष्य संघर्ष की आंच में तपकर मनुष्य बनता है
मनुष्य संघर्ष की आंच में तपकर मनुष्य बनता है

संघर्ष जीवन का अवश्यंभावी तत्व है। जहां संघर्ष नहीं, वहां जीवन का आनंद नहीं रोजमर्रा की सुविधाओं में हम इतने लिप्त हैं कि हल्का सा अभाव हमारे संघर्ष की प्रक्रिया को जटिल बना देता है।

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इसका प्रभाव दो तरह से पड़ता है-सकारात्मक और नकारात्मक। यदि संघर्ष हमें उदार, विनम्र और परिश्रमी बना देता है, तो इसे सकारात्मक प्रभाव कहा जाएगा। इसके विपरीत यदि संघर्ष हमें तोड़ देता है, तो हम कमजोर हो जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार विपरीत स्थितियों को अनुकूल करने का प्रयत्न करना ही संघर्ष है, लेकिन इसके साथ विश्वास का होना आवश्यक है। विश्वास संघर्ष की थकान को महसूस नहीं होने देता। यह एक सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है। इसलिए संघर्ष के दौर में अपनी मेहनत पर आस्था रखनी चाहिए। साथ में ईश्वर प्रार्थना से मिली शांति और संगी-साथी की सराहना मिल जाए, तो क्या कहने। अनेक उद्योगपति, राजनेता और समाजसेवकों ने भीषण संघर्ष करते हुए अपने दिन गुजारे पर उनका विश्वास ही उनकी प्रेरणा बना। लाल बहादुर शास्त्री और राजेंद्र प्रसाद जैसे महापुरुषों ने अभावों से संघर्ष करते हुए जीवन की गरिमा को पहचाना था। वस्तुत: इनके लिए जीवन और संघर्ष एक-दूसरे के पर्याय थे। किसी का बचपन संघर्षो में बीता तो किसी की युवावस्था। किसी ने अधेड़ावस्था में बीमारी का दंश भोगा, तो किसी ने वृद्धावस्था में एकाकीपन की पीड़ा भोगी, लेकिन यह सोचना कि मैंने ही सर्वाधिक संघर्ष किया, बड़ा अहंकारपूर्ण है।

वास्तव में संघर्षमय जीवन अपने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जैसे आंच में तप कर सोना कुंदन बनता है वैसे मनुष्य भी संघर्ष की आंच में तपकर मनुष्य बनता है। उसमें जीवनोपयोगी गुणों का विकास होता है, जो उसे परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाते हैं। ऐसा व्यक्ति निर्भीक, स्पष्टवादी और विचारक होता है और बाद के जीवन में दुखों को बड़ी आसानी से बर्दाश्त कर लेता है।

संघर्ष चाहे स्वयं के लिए किया गया हो या दूसरों के उत्थान के लिए, यह अंतत: हमारे स्वास्थ्य और संवृद्धि में सहायक होता है। संघर्ष के बाद सफलता मिलती है, जो हमें खुशी प्रदान करती है। चुनौती को स्वीकार किए बगैर जीतना असंभव है। इसलिए संघर्ष दुख नहीं, दुख से बाहर आने का प्रयास है, यानी सुख और आनंद पाने का प्रयास है। तो क्यों न संघर्ष को आनंद का उद्गम कहा जाए


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