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प्रेम, समर्पण, ईमानदारी व निष्ठा से बनाई जगह घर कहलाता

अक्सर लोग सुख के लिए बाहर घूमने जाते हैं, पिकनिक पर जाते हैं और संबंधियों के यहां जाते हैं। इसके बावजूद वास्तविक सुख उन्हें इन स्थानों पर भी प्राप्त नहीं होता। ऐसा इसलिए, क्योंकि वह सुख उनके अपने घर में ही उपलब्ध होता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 18 Dec 2014 09:24 AM (IST)Updated: Thu, 18 Dec 2014 09:38 AM (IST)
प्रेम, समर्पण, ईमानदारी व निष्ठा से बनाई जगह घर कहलाता
प्रेम, समर्पण, ईमानदारी व निष्ठा से बनाई जगह घर कहलाता

अक्सर लोग सुख के लिए बाहर घूमने जाते हैं, पिकनिक पर जाते हैं और संबंधियों के यहां जाते हैं। इसके बावजूद वास्तविक सुख उन्हें इन स्थानों पर भी प्राप्त नहीं होता। ऐसा इसलिए, क्योंकि वह सुख उनके अपने घर में ही उपलब्ध होता है।

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एक दार्शनिक का कहना भी है कि 'घर मात्र ईंट-पत्थरों से बना हुआ मकान नहीं होता, बल्कि घर वह होता है जिसे परिवार के सदस्य मिलकर बनाते हैं। यदि लोग प्रेम, समर्पण, ईमानदारी और निष्ठा से रहें, तो उन्हें स्वर्ग का आनंद और सुख अपने घर में ही मिलेगा। घर एक ऐसा स्थान होता है, जहां पर व्यक्ति अपनी मर्जी से अपने स्वाभाविक रूप में रहता है। यहां उसे किसी मुखौटे की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके विपरीत बाहर निकलने पर व्यक्तियों को अनेक अवसरों पर झूठी मुस्कान और झूठ का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन फिर भी उन्हें सुकून नहीं मिलता। सुकून और सुख का स्थान घर ही है। प्रसिद्ध विद्वान लांगफेलो का कहना है कि 'अपने घर से प्रेम करने वाले और उसके प्रति निरंतर आकर्षण प्राप्त करने वाले व्यक्ति ही संसार के सबसे अधिक सुखी प्राणी हैं।Ó

आज घर में व्यक्तियों को सुकून नहीं है। अक्सर घर के सदस्य जब बाहर से लौटते हैं तो थके हुए तनावग्रस्त और चिंताओं से घिरे होते हैं। ऐसे में यदि वे आपस में ही कलह में लगे रहते हैं, तो घर का सुख, दुख में बदल जाता है। स्वेट मार्डेन 'सुख की साधनाÓ नामक पुस्तक में कहते हैं कि 'कलह-क्लेश, कुत्सित भावनाएं, कटु आलोचना, चिड़चिड़ापन, अधीरता घर की शांति को हर लेते हैं और अशांति का कारण बना करते हैं।Ó बहुत से लोग घर में होने वाले झगड़ों और तनाव के कारण समय से पहले ही मौत को गले लगा लेते हैं। घर में सुख व सुकून के बजाय तनाव और दुख मिलने के कारण ऐसे लोग शारीरिक कष्ट, असफलता, भावनात्मक क्षति, अपराध, गुस्सा, आर्थिक नुकसान और विपरीत सामाजिक परिस्थितियों को झेल नहीं पाते। वे दुखों से इतने भयभीत हो जाते हैं कि आत्महत्या करने में ही उन्हें इन सबका हल नजर आता है। घर मात्र ईट व पत्थरों से बना निवास नहीं होता, बल्कि उसमें प्रेम, करुणा, स्नेह और ममता का वास होता है।

जिस घर में हंसी-खुशी और उल्लास होता है, वहां पर बच्चों के जीवन का पूर्ण विकास होता है। सुखी गृहस्थी का महान रहस्य ही हृदय में प्रेम, स्नेह और करुणा का वास है।


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