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जीवन स्वयं में एक अनबूझ पहेली है

मनुष्य का जीवन स्वयं में एक अनबूझ पहेली है। अपार रहस्यों से भरा हमारा जीवन एक साथ अनेक दिशाओं में चलते हुए अनेक अर्थो को प्रतिपादित करता है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति इस जीवन को अपने अनुरूप धारण करता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 01 Nov 2014 10:56 AM (IST)Updated: Sat, 01 Nov 2014 11:06 AM (IST)
जीवन स्वयं में एक अनबूझ पहेली है

मनुष्य का जीवन स्वयं में एक अनबूझ पहेली है। अपार रहस्यों से भरा हमारा जीवन एक साथ अनेक दिशाओं में चलते हुए अनेक अर्थो को प्रतिपादित करता है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति इस जीवन को अपने अनुरूप धारण करता है।

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जीवन के रहस्यों को जब हम जानने का प्रयास करते हैं तो एक साथ कई रहस्य सामने आ जाते हैं। कभी यह विचार आता है कि हमारा जीवन सार्थक है। कभी निर्थक दिखता है, कभी भगवान पर शंका की उंगली उठती है। इस तरह के अनेक प्रश्न मन को झकझोरते रहते हैं। उनमें से एक प्रश्न यह भी उठता है कि हम अपने इष्टदेव को भगवान क्यों कहते हैं? इस भगवान शब्द का औचित्य क्या है?

दरअसल, हम जब अपने इष्टदेव का नाम लेते हैं तो हम उनके साथ अनेक श्रद्धावाचक शब्द जोड़ देते हैं। कभी-कभी तो हम अपने नाम के आगे या पीछे भी कई शब्द जोड़ते हैं जिसका अर्थ होता है कि हम अपने से बड़ों को सीधे नाम लेकर नहीं पुकारना चाह रहे हैं। हमारा नाम तो साधारण होता है, लेकिन उसमें कुछ विशेषण लगा देने पर नाम का वजन बढ़ जाता है। प्रश्न यह उठता है कि हम अपने इष्टदेव को जब भगवान कहते हैं तो भगवान शब्द को ठीक से समझ लेना चाहिए। मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी अभिलाषा होती है कि उसे अधिक से अधिक आयु मिले, विद्या मिले, बल हो, अपार बुद्धि हो, ऐश्वर्य हो और शांति मिले।

इन छह तत्वों की कामना हमारे जीवन में होती है। लेकिन मनुष्य का जीवन कामनाओं से भरा है। जितनी हम कामनाओं की पूर्ति का प्रयास करते हैं, रेत पर पानी की बूंद की तरह सब विलीन होता रहता है। इसलिए आयु, विद्या, बल, बुद्धि, ऐश्वर्य और शांति की पिपासा जीवन भर बनी रहती है। जो वस्तु हमारे पास नहीं होती उसे पाने की ललक मन में बनी रहती है, अगर वह वस्तु किसी के पास होती है तो हम उसे अपने से अधिक श्रेष्ठ मानने लगते हैं। भगवान शब्द भग और वान से बना है। भग का अर्थ होता है आयु, विद्या, बल, बुद्धि, ऐश्वर्य और शांति का सम्मिलित स्वरूप और वान का अर्थ होता है जिनके पास ये तमाम शक्तियां हों, उसी को भगवान कहते हैं। जब हम अपने इष्टदेव की पूजा करते हैं तो हम इष्टदेव से यही चाहते हैं कि उनके पास जो ये छह गुण हैं वे सभी हमें प्राप्त हों। प्रभु की प्रार्थना में मनुष्य अपना आत्मिक विकास चाहता है।


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