मन को एकाग्र करना अत्यंत आवश्यक है
भारत के सभी धर्र्मो व संप्रदायों का यही मानना है कि मन अत्यंत चंचल है, इसलिए उसकी चंचलता को दूर करने के लिए मन को एकाग्र करना अत्यंत आवश्यक है। मन की एकाग्रता के बगैर जीवन के किसी भी क्षेत्र में मनुष्य को सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। हमारे चित्त
भारत के सभी धर्र्मो व संप्रदायों का यही मानना है कि मन अत्यंत चंचल है, इसलिए उसकी चंचलता को दूर करने के लिए मन को एकाग्र करना अत्यंत आवश्यक है। मन की एकाग्रता के बगैर जीवन के किसी भी क्षेत्र में मनुष्य को सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। हमारे चित्त में अनेक मनोवृत्तियां पनपती हैं और उन सब मनोवृत्तियों को एकाग्र करने से ही शक्ति और प्रगाढ़ता का विकास होता है।
उदाहरणार्थ सूर्य की फैली हुई किरणों के सामने जब एक आतिशी शीशा उसके सामने रखा जाता है तब उसकी किरणों एक बिंदु पर केंद्रित हो जाती हैं और उनमें इतनी शक्ति आ जाती है कि जिस स्थान पर भी वह सूर्य बिंदु केंद्रित होता है वहीं अपनी शक्ति से अग्नि प्रज्ज्वलित कर देता है। इसी प्रकार जो भी मनुष्य अपनी बिखरी हुई शक्तियों को जितना अधिक एकाग्र कर लेता है, उसको उतनी ही अधिक सफलता मिलती है।
मन की एकाग्रता का यह सिद्धांत हर कार्य पर लागू होता है। स्वामी रामतीर्थ तो अपने मन को नियंत्रित करने के लिए स्वयं ही अपनी परीक्षा करते थे। प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन पर नियंत्रण करने के लिए अभ्यास करना चाहिए। मन को नियंत्रित करने में योग मुख्य भूमिका निभा सकता है। योग करने के बाद मन को नियंत्रित करने का प्रयास व अभ्यास भी करना चाहिए। कोई भी काम मुश्किल अवश्य होता है, किंतु नामुमकिन बिल्कुल नहीं होता। अनेक विभूतियां हमें मन को एकाग्र करने के लिए प्रेरित अवश्य करती हैं, जिन्होंने अपने मन को एकाग्र कर जीवन के सफर में सफलताएं हासिल कीं।
हम सभी जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद को भी अनेक प्रलोभन दिए गए किंतु ये सब प्रलोभन उनके लिए व्यर्थ साबित हुए। वह मन पर नियंत्रण कर उसके दास नहीं बल्कि स्वामी बन चुके थे। ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को सभी गुण और क्षमताएं प्रदान करने की शक्ति प्रदान की हैं, बस जरूरत है उस शक्ति को पहचान कर अपने को विकसित करने की और यह तभी संभव है जब मन आपके वश में हो। यह सच है कि उन्हीं का जीवन सफल और सार्थक है, जो छोटी से छोटी बातों में भी आत्म निरीक्षण करते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति कभी भी अपने मन को गुलाम नहीं बनने देते। यदि मन पर काबू पा लिया जाए तो सारी इंद्रियों पर काबू पाया जा सकता है और सारी इंद्रियों पर काबू पाकर दुख और मुसीबत को भी टाला जा सकता है।