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मनुष्य विवेकहीनता और पशु प्रवृत्ति की स्थिति में अपराध कर बैठता है

मानसिक व्याधियों का एक बड़ा कारण अपराध बोध का भार भी है। मनुष्य विवेकहीनता और पशु प्रवृत्ति की स्थिति में अपराध कर बैठता है, परंतु जब उसकी आत्मा और विवेक दोबारा प्रबल होकर अपराध की विवेचना करते हैं, तो मनुष्य अपराध बोध से भर जाता है और इस वजह से

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 02 Apr 2015 10:44 AM (IST)Updated: Thu, 02 Apr 2015 10:47 AM (IST)
मनुष्य विवेकहीनता और पशु प्रवृत्ति की स्थिति में अपराध कर बैठता है

मानसिक व्याधियों का एक बड़ा कारण अपराध बोध का भार भी है। मनुष्य विवेकहीनता और पशु प्रवृत्ति की स्थिति में अपराध कर बैठता है, परंतु जब उसकी आत्मा और विवेक दोबारा प्रबल होकर अपराध की विवेचना करते हैं, तो मनुष्य अपराध बोध से भर जाता है और इस वजह से कभी-कभी मानसिक संतुलन खो बैठता है।

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इस असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति और बड़ा अपराध कर बैठता है अथवा आत्महत्या जैसा पाप कर बैठता है, जैसे कि अंत में हिटलर ने किया था।

अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक ब्रायन बांस ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि पुनर्जन्म सत्य है और जीव अपने पूर्वजन्मों के कर्मो के अनुरूप अगले जन्म में वैसी मनोस्थिति व व्यक्तित्व प्राप्त करता है। यह निष्कर्ष उन्होंने अपनी खोज और तथ्यों के आधार पर लिखा है।

अक्सर लोग मनोचिकित्सकों या आध्यात्मिक गुरुओं के पास अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए जाते हैं, परंतु आज तक इस व्याधि का कोई कारगर इलाज संभव नहीं हुआ है। अपराध बोध अपराध की ही प्रतिक्रिया है जो अपराध करने वाले के विरुद्ध होता है। विशेषज्ञों के मतानुसार पश्चाताप और विवेक ऐसे उपाय हैं जिनके द्वारा इससे कुछ हद तक मुक्ति पाई जा सकती है। पश्चाताप यदि केवल दिखावे के लिए किया जाएगा तो उससे कोई लाभ नहीं होगा। इसके लिए एक अच्छे गुरु की आवश्यकता होती है जो सर्वप्रथम अपराधी के विवेक को जाग्रत करता है और उसके बाद उसे पश्चाताप की सही विधि बताता है। इसीलिए आदिकाल में राक्षसों के भी गुरु होते थे जैसे कि शुक्राचार्य थे।

अपराध बोध मन और आत्मा पर लगा एक ऐसा घाव होता है जिसे केवल एक योग्य गुरु ही किसी चिकित्सक की तरह ठीक कर सकता है। संसार के ज्यादातर धार्मिक विश्वासों और मतों के अंदर अपराध बोध से मुक्ति के उपाय बताए गए हैं। जैसे ईसाई इसे कन्फेशन यानी गलती स्वीकार करना कहते हैं, क्योंकि इलाज तो तभी हो सकता है जब बीमार खुद स्वीकार करे कि वह बीमार है और उसे ज्ञात हो कि किस कारण वह बीमार है और उन कारणों को दूर करे। तौबा से भी यही तात्पर्य है। स्वाध्याय के द्वारा अपराध बोध को पहचानें और यदि अपराध बोध है तो उसे स्वीकार करें।


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