कैसे संवारें मन रूपी बगिया को
यदि जीवन रूपी बगिया को सुंदर बनाना है, उसे रंगों से सराबोर करना है तो मन रूपी बगिया में अच्छे विचार बीजों को बोइए, सकारात्मक सोच के पौधे लगाइए।
भाषा हमारे विचारों की वाहक होती है। अत: विचारों का सुधार करके ही हम भाषा का सुधार कर सकते हैं। विचार या भाव भाषा की आत्मा के समान होते हैं। इसलिए विचारों अथवा भावों की गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। विचारों अथवा भावों की गुणवत्ता से कर्म की गुणवत्ता तथा कर्म की गुणवत्ता से वस्तुओं या उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखना संभव है। मनुष्य हर कर्म किसी न किसी विचार के वशीभूत ही करता है, अत: विचारों का बड़ा महत्व है। जैसे विचार वैसे कर्म तथा जैसे कर्म वैसा जीवन। विचार ही हमारे जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं। विचारों का उद्गम हमारा मन होता है। अत: मन रूपी बगिया को संवारना जरूरी हो जाता है। कैसे संवारें मन रूपी बगिया को?
जिस प्रकार अपनी पसंद के सुंदर फूलों के पौधों के बीज बोना संभव है उसी प्रकार अच्छे जीवन के निर्माण और विकास के लिए अच्छे कर्म करना और अच्छे कर्म करने के लिए अच्छे विचारों का विकास करना भी संभव है। विचारों का उद्गम स्थल है हमारा मन, अत: मन पर नियंत्रण द्वारा हम गलत विचारों पर रोक लगा सकते हैं तथा अच्छे विचारों से मन को आप्लावित कर सकते हैं। यदि जीवन रूपी बगिया को सुंदर बनाना है, उसे रंगों से सराबोर करना है तथा उसे भीनी-भीनी गंध से महकाना है तो मन रूपी बगिया में चुन-चुन कर अच्छे विचार बीजों को बोइए, सकारात्मक सोच के पौधे लगाइए। प्राय: कहा जाता है कि पुरुषार्थ से ही कार्य सिद्ध होते हैं, मन की इच्छा से नहीं।
बिल्कुल ठीक बात है, लेकिन मनुष्य पुरुषार्थ कब करता है और किसे कहते हैं पुरुषार्थ? पहली बात तो यह है कि मन की इच्छा के बिना पुरुषार्थ भी असंभव है। मनुष्य में पुरुषार्थ या हिम्मत अथवा प्रयास करने की इच्छा भी किसी न किसी भाव से ही उत्पन्न होती है और सभी भाव मन द्वारा उत्पन्न तथा संचालित होते हैं। पुरुषार्थ के लिए उत्प्रेरक तत्व मन में उत्पन्न होने वाले भाव ही तो हैं। अत: कर्म की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए मन को संतुलित सकारात्मक विचारों से ओतप्रोत रखना ही श्रेयस्कर है और यही अभीष्ट भी। जब हम अपने मन में सकारात्मक विचारों को पनपने देंगे तो जीवन के तमाम क्षेत्रों में हमारे दृष्टिकोण में एक सकारात्मकता का भाव होगा और यह हमारे व्यक्तित्व में भी परिलक्षित होगा। यह वह आसान तरीका है जिससे हम दूसरों पर अपनी अच्छी छाप डाल सकते हैं।