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ईश्वर किस प्रकार कृपा करते है

कोई विपदा आते ही अपने भाग्य पर दोषारोपण करने लगना और ईश्वर की सत्ता पर विश्वास अस्थिर हो उठना एक सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है। हताशा मन-मस्तिष्क को घेर लेती है। हताशा से समस्या का न तो सही आकलन हो पाता है और न ही उससे जूझने के लिए पर्याप्त शक्ति

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 30 Mar 2015 10:16 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 10:25 AM (IST)
ईश्वर किस प्रकार कृपा करते है
ईश्वर किस प्रकार कृपा करते है

कोई विपदा आते ही अपने भाग्य पर दोषारोपण करने लगना और ईश्वर की सत्ता पर विश्वास अस्थिर हो उठना एक सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है। हताशा मन-मस्तिष्क को घेर लेती है। हताशा से समस्या का न तो सही आकलन हो पाता है और न ही उससे जूझने के लिए पर्याप्त शक्ति संयोजित हो पाती है। क्या सदा-सर्वदा निरापद और सुखद जीवन ही सौभाग्य है और ईश्वरीय कृपा का प्रतीक है? ईश्वर किस प्रकार कृपा करता है, इसे समझना अति आवश्यक है।

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ईश्वर की कृपा और सौभाग्य की अनुभूति अन्य जीवों से अपनी तुलना करते ही स्पष्ट होने लगती है। जितने जीव जल में विचरण कर रहे हैं, उतने ही थल पर हैं। उनमें से मनुष्य की शारीरिक रचना सबसे सुगठित और सुचालित है। मनुष्य अपनी इंद्रियों और बौद्धिक चेतना के कारण सभी जीवों में श्रेष्ठ है। यह एक बड़ा उपकार ही मनुष्य के परमात्मा के प्रति किसी भी प्रकार के संदेह को निमरूल सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। मनुष्य योनि का प्राप्त होना जीव को अवसर प्रदान करता है अपने आत्मिक विकास का ताकि वह चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त हो सके और अपने मूल अर्थात परम शक्ति में विलीन हो सके। मृत्यु के पश्चात शरीर यहीं पंच तत्व में विलीन हो जाता है। जीवात्मा कहां जाती है, यह संसार में किसी को भी ज्ञात नहीं है, किंतु हर मनुष्य जन्म से मृत्यु तक की प्रक्रिया का साक्षी अवश्य बनता है। इसका गंभीर चिंतन, मनन करने के बाद संपूर्ण प्रक्रिया के सामान्य कष्टों का बार-बार संवाहक कौन बनना चाहेगा। अन्य कोई जीव नहीं बस एक मनुष्य ही सौभाग्यशाली है कि इससे मुक्त होने में सफल हो सकता है। इस तरह मनुष्य पर ईश्वर की कृपा अपार है और भाग्य के सारे द्वार खुले हुए हैं। इसके बाद भी विपत्तियां आना और जीवन में दुख आखिर किस ओर इंगित करने वाले हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो विपत्तियों व समस्याओं ने ही मानव कल्याण की राह खोली है। यदि भगवान राम को वनवास हुआ और सीता हरण हुआ तभी मानवता को मर्यादा पुरुषोत्तम का सद प्रेरणाप्रद चरित्र मिला।

महाभारत ने भगवद्गीता का उपहार दिया। कबीर समाज से तिरस्कृत होकर काशी से मगहर गए, तो कबीर वाणी अमर हो गई। सिख गुरुओं की शहादत ने धर्म-संस्कृति और सभ्यता को कालकवलित होने से बचा लिया। विपत्तियां सदैव मनुष्य को निखारने और बड़ी विपत्ति से बचाने के लिए होते हैं।


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