आप किस तरह और कैसे जीते हैं
मैंने अपने जीवन में आदर्शे और नैतिकता की चादर ओढ़कर अपने जीवन को सार्थक करते हुए लोगों को भी देखा है और ऐसे लोगों को भी देखा है जिनका मानना है कि आदर्श और नैतिकता से सिर्फ झोपड़ियां बनाई जा सकती हैं, महल खड़े नहीं हो सकते। इसका सीधा अर्थ
मैंने अपने जीवन में आदर्शे और नैतिकता की चादर ओढ़कर अपने जीवन को सार्थक करते हुए लोगों को भी देखा है और ऐसे लोगों को भी देखा है जिनका मानना है कि आदर्श और नैतिकता से सिर्फ झोपड़ियां बनाई जा सकती हैं, महल खड़े नहीं हो सकते। इसका सीधा अर्थ तो यही हुआ कि आज जैसे-जैसे विकास के नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं, वैसे-वैसे आदर्श धूल-धूसरित हो रहे हैं।
वस्तुत: हर दौर में अच्छे, ईमानदार और आदर्शवादी व्यक्ति मौजूद होते हैं। अपने जीवन में जब भी हम ऐसे गुणों का निर्वाह करते हैं तो इससे न केवल हमारे चेहरे पर संतुष्टि का भाव झलकने लगता है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व में भी उसकी गरिमा दिखाई पड़ती है। प्रश्न उठता है कि अच्छाई, ईमानदारी और आदर्श आदि उदात्त गुणों के निर्वाह से हमारे चेहरे पर सकारात्मक भाव क्यों और कैसे प्रकट हो जाते हैं? क्या इन भावों का हमारे स्वास्थ्य और विचारों से भी कोई संबंध है? अपने बीते हुए दिनों और घटनाओं पर जरा नजर डालिए। आपने भी अपने जीवन में कई बार इन अच्छाइयों का परिचय दिया होगा। उस समय आपकी मनोदशा कैसी थी और उस मनोदशा का आपके स्वास्थ्य और विचारों पर क्या प्रभाव पड़ा था? निश्चित ही आपका उत्तर सकारात्मक होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि आप या तो इस बात पर सिर धुन सकते हैं कि गुलाब में कांटे हैं या इस पर खुश हो सकते हैं कि कांटों से भी गुलाब खिलते हैं।
जब भी हम ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, किसी की मदद करते हैंैं, तो उससे अपने भीतर हम संतोष महसूस करते हैं। तब वही भाव हमारे चेहरे और विचारों पर भी झलकने लगता है। इससे हमारे पूरे व्यक्तित्व में एक सकारात्मक परिवर्तन होता है। हमें अपना हर काम इस तरह करना चाहिए, जैसे हम सौ साल तक जीएंगे, पर ईश्वर से रोजाना प्रार्थना ऐसे करनी चाहिए, जैसे कल हमारी जिंदगी का आखिरी दिन हो। जब हम ईश्वर के प्रति इतने पवित्र और परोपकारी बनकर प्रस्तुत होंगे, तभी जीवन को सार्थकता तक पहुंचा सकेंगे। वैसे भी अमीर वह नहीं है, जिसके पास सबसे ज्यादा है, बल्कि वह है, जिसे और कुछ नहीं चाहिए। जिंदगी तो सभी जीते हैं, लेकिन इस संदर्भ में यह बात मायने नहीं रखती कि आप कितना जीते हैं, बल्कि लोग इसी बात को ध्यान में रखते हैं कि आप किस तरह और कैसे जीते हैं।