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गोकुल में श्रीकृष्ण के जन्म लेने की सूचना प्रात: अष्टमी तिथि को प्रसारित हुई थी

कृष्ण का जन्मोत्सव मात्र उनकी जन्मस्थली मथुरा ही नहीं, बल्कि भारतवर्ष सहित विश्व के अन्य देशों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिरों की सजावट देखते ही बनती है। खासकर गोकुल, मथुरा और बृंदावन (उत्तरप्रदेश) के मंदिरों की तो बात ही निराली होती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 27 Aug 2015 05:23 PM (IST)Updated: Fri, 28 Aug 2015 08:55 AM (IST)
गोकुल में श्रीकृष्ण के जन्म लेने की सूचना प्रात: अष्टमी तिथि को प्रसारित हुई थी
गोकुल में श्रीकृष्ण के जन्म लेने की सूचना प्रात: अष्टमी तिथि को प्रसारित हुई थी

कृष्ण का जन्मोत्सव मात्र उनकी जन्मस्थली मथुरा ही नहीं, बल्कि भारतवर्ष सहित विश्व के अन्य देशों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिरों की सजावट देखते ही बनती है। खासकर गोकुल, मथुरा और बृंदावन (उत्तरप्रदेश) के मंदिरों की तो बात ही निराली होती है।
गोकुल में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म लेने की सूचना प्रात: अष्टमी तिथि को प्रसारित हुई थी। अत: ब्रजमंडल में उसी परंपरा का अनुसरण करते हुए भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव सूर्योदय के समय विद्यमान उदयातिथि के रूप में उपलब्ध अष्टमी के दिन मनाया जाता है।
इसी कारण इसे गोकुलाष्टमी कहा जाता है। पंडित विशाल दयानंद शास्‍त्री बताते हैं कि वैष्णव मंदिरों में जन्माष्टमी का उत्सव उदयातिथि वाले दिन ही मनाया जाता है। नंद के पुत्र-रत्‍‌न की प्राप्ति की खुशी में दूसरे दिन गोकुल में बड़े हर्ष के साथ उत्सव मनाया गया, जिसमें समस्त गोकुलवासियों ने भाग लिया।
उस परंपरा का निर्वाह आज भी ब्रजमंडल में अत्यंत भव्य रूप में होता है। नंदोत्सव भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की नवमी को मनाया जाता है। इस उत्सव को स्थानीय भाषा में दधिकादो कहा जाता है।
श्रीमद्भागवत महापुराण में इसका अत्यंत सुंदर वर्णन मिलता है। इस उत्सव में भगवान के श्रीविग्रह पर कपूर, हल्दी, दही, घी, तेल, केसर तथा जल आदि चढ़ाने के बाद लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ इन वस्तुओं का परस्पर विलेपन और सेवन करते हैं। कई स्थानों पर हाडी में दूध-दही भरकर, उसे काफी ऊंचाई पर टागा जाता है।
युवकों की टोलिया उसे फोड़कर इनाम लूटने की होड़ में बहुत बढ़-चढ़कर इस उत्सव में भाग लेती हैं। वस्तुत: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत केवल उपवास का दिवस नहीं, बल्कि यह दिन महोत्सव के साथ जुड़कर व्रतोत्सव बन जाता है।
श्रीकृष्णावतार हुए पाच सहस्त्राब्दिया बीत चुकी हैं, परंतु उनका महात्म्य दिन दूना-रात चौगुना बढ़ता जा रहा है। श्रीकृष्ण हम सबके प्रेरणास्त्रोत हैं, जिनकी अमृतवाणी गीता के रूप में आज भी हमें जीवन जीने की कला सिखा रही है।
ब्रजभूमि में भगवान श्रीकृष्ण कभी बड़े नहीं होते। भक्तों के अपार भाव को देखते हुये उन्हें हर साल जन्म लेना पड़ता है। बरसाना स्थित श्रीजी मंदिर हो अथवा नंदगाव का नंदभवन, अपने प्रभु के जन्म से पूर्व सजधज कर तैयार है।
नंदगाव में जन्म लेने वाले कन्हैया को बरसाना का गोसाई समाज बधाई देने के लिए तत्पर दिखाई दे रहा है। विभिन्न लीलाओं के माध्यम से श्रद्धालुओं को कान्हा की ब्रजलीलाओं का दर्शन भी आकर्षण का केन्द्र रहता है।
नंदगाव ही ऐसा स्थल है जहा भगवान आशुतोष भोलेनाथ को प्रभु के दर्शन काफी मन्नतों के बाद हुये और उनको एक बार तो नंद के द्वार से ही लौटा दिया गया था। ब्रज की परंपरा में खास बात यह है कि यहा जन्मोत्सव नहीं मनाया जाता बल्कि भक्तों में प्रभु के जन्म लेने का भाव होता है और उसी भाव से नंदोत्सव, लाला को झूला झुलाना, खिलौनों से खिलाने का भाव प्रभु के हर साल जन्म लेने के भाव को प्रदर्शित करता है।
बरसाना में भी मनाता हें जन्मोत्सव
भगवान श्रीकृष्ण की आराध्य शक्ति राधारानी का गाव बरसाना भी आनंद कंद श्रीकृष्ण चंद्र के जन्मोत्सव की तैयारियों में डूबा हुआ है। सेवायत छैल बिहारी गोस्वामी के अनुसार यहा रात्रि बारह बजे भगवान श्याम सुंदर एवं राधारानी का पंचामृत अभिषेक कर आकर्षक श्रगार किया जाऐगा। गोसाईं समाज द्वारा परंपरागत बधाई गायन के साथ आने वाले भक्तों को पंजीरी का प्रसाद वितरण किया जाऐगा। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिऐ नगर पंचायत द्वारा रंगीली गली, पीली पोखर मार्ग, राधा बाग आदि मागरें पर सफाई व रोशनी के विशेष प्रबंध किये गये हैं।
ननिहाल से आता है बधाई संदेश
नंदगाव में जन्माष्टमी की अपनी अनूठी परंपरा है। यहा भादों मास के प्रारंभ से अष्टमी तक गोसाई समाज द्वारा बधाई गायन किया जाता है। अष्टमी के दिन दोपहर को कन्हैया की ननिहाल महराना गाव तथा गिडोह गाव से भाईचारा में चाव यानी बधाई आती है। चाव अर्थात एक परात अथवा डलिया में फल, मिष्ठान, वस्त्र, अलंकार आदि रखकर ग्रामीण नाचते गाते बधाई देने के लिऐ नन्द भवन पहुंचते हैं। रात्रि दस बजे ढाड़ी ढाड़िन लीला का अद्भूत मंचन किया जाता है। ढाड़ी गोवर्धन का रहने वाला था उसने नंद बाबा से कभी कुछ नहीं मागा।
रात्रि बारह बजे जन्म लेंगे नन्दलाल
नन्दगाव में जन्माष्टमी के दिन रात्रि बारह बजे भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का अभिषेक किया जाएगा। ठीक बारह बजे प्रभु के पट खोल दिये जाते हैं और आरती उतारी जाती है। नन्दगाव की गली-गली नन्द के आनंद भयौ जय कन्हैया लाल के जयकारों से गूंज उठती है। खास बात यह है कि उसी समय प्रभु के स्पर्श वस्त्र को श्रद्धालुओं में बाटा जाता है, जिसे फरुआ भी कहा जाता है। इसको लेने के लिए श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों में होड़ सी मची रहती है।
नंद के आनंद भयौ जय कन्हैया लाल की
जन्मोत्सव के उपरात नंदगाव में नंदोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। बताते हैं कि कृष्ण के जन्म के अगले दिन बरसाना से राधारानी के माता पिता वृषभानु और कीरत रानी सखियों के साथ नन्द बाबा को बधाई देने आये थे। बरसाना के गोसाई समाज द्वारा उसी परंपरा का निर्वहन बड़े धूमधाम से किया जाता है। समाज बरसाना से नन्द भवन आकर बधाई गायन करता है।
भोलेबाबा करते हैं कान्हा की झाड़ फूंक
कान्हा के जन्म की खबर सुनकर भगवान भोलेनाथ भी दर्शन करने के नन्द भवन पहुंचे, लेकिन उनके विकराल स्वरूप को देखकर यशोदा माता ने उन्हें दर्शन नहीं कराये। इस पर कान्हा रोने लगे तो भोले बाबा को बुलाकर झाड़-फूंक कराई गई। इस पर लाला हंसने लग गया। भाड खंभे पर चढ़कर नंदबाबा की वंशावली का बखान करता है।
परिवार सहित विराजे हैं कान्हा
नंदगाव (उत्तरप्रदेश)में एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहा कान्हा अपने परिजनों के साथ विराजमान हैं। मंदिर में कान्हा के पिता नन्द बाबा, माता यशोदा रानी, बड़े भाई बलराम, सखा धनसुखा एवं मनसुखा तथा ससुराल की मर्यादा में कोने में दूर खड़ी राधारानी के साथ भगवान श्रीकृष्ण विराजमान हैं।


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