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ईश्वर जीव को सोद्देश्य इस संसार में भेजता है

जिसके प्रारब्ध में संगीतकार बनना लिखा है, वह चिकित्सक, विचारक, साहित्यकार, एडवाइजर, इंजीनियर और कलाकार नहीं बन सकता।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 19 Jul 2016 11:33 AM (IST)Updated: Tue, 19 Jul 2016 11:39 AM (IST)
ईश्वर जीव को सोद्देश्य इस संसार में भेजता है

ईश्वर जीव को सोद्देश्य इस संसार में भेजता है। हम वह बन जाना चाहते हैं, जो हम बनने के किए बने ही नहीं हैं। उस अलभ्य को प्राप्त करने की चाहत में हम शक्ति, श्रम, ऊर्जा, सामथ्र्य, पराक्रम, समय व पुरुषार्थ सब कुछ का अपव्यय कर बैठते हैं, लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लगता सिवाय निराशा, पश्चाताप, उपेक्षा और आत्मग्लानि के। वह (ईश्वर) उसको बार-बार वही बनाता है जिसके लिए उसे बनाया गया है।
जिसके प्रारब्ध में संगीतकार बनना लिखा है, वह चिकित्सक, विचारक, साहित्यकार, एडवाइजर, इंजीनियर और कलाकार नहीं बन सकता। यदि चाहे भी तो कुछ दिनों के प्रायोगिक परीक्षण के बाद वह थका-हारा स्वयं को सर्वथा असमर्थ मानकर पुन: संगीत में ही सुख और शांति का आश्रय तलाशेगा। अंतत: वही प्रारब्ध का सेतु बनकर उपलब्धियों का कारक बनेगा। यदि हम दूसरे, तीसरे व चौथे व्यवसाय, कार्य, व्यापार, पद व मंच पर सफल होने का दंभ भरते हैं तो सहज रूप में पनपी नैसर्गिक अभिरुचि वाले क्षेत्र में भी उपलब्धियों के शिखर को क्यों नहीं स्पर्श कर सकते? जब-जब हम देव निर्धारित विधान को चुनौती देकर स्वयं निर्देशित मार्ग की ओर अग्रसर होने का प्रयास करते हैं तो असफलताएं सर्पदंश सदृश मुंह बाए खड़ी रहती हैं। इसके विपरीत देव सत्ता से विनिर्दिष्ट दुर्गम मार्र्गो की ओर प्रस्थान कराते हुए देवकृपा से स्थितियों को बदलते हुए विपरीत राहों को भी सुगम बनाती चलती हैं और ऊंचे मुकाम तक पहुंचाती हैं, जहां हमारा पहुंचना नितांत कठिन था।
दैवकृपा से ही असमर्थता सामथ्र्य में; अक्षमता क्षमता में; विपरीतता अनुकूलता में और जटिलता सहजता में बदलती चली जाती है और हमें अपना कृतित्व तब कितना सुखद, आनंदमय और आत्मसंतोष का विषय लगने लगता है। जो हम होना चाहते हैं, उस मार्ग में सफलता, सुख और आनंद की कोई गारंटी नहीं, लेकिन जो कार्य प्रभु की अनुकंपा और निर्देश में संपन्न होते हैं, सफलता उनके गंतव्य व मंतव्य की आधारशिला हो जाती है। इस चराचर जगत में किसी निर्धारित भूमिका के साथ जीव की उत्पत्ति हुई है। कोई भी जीव न तो अक्षम व अपात्र है और न किसी प्रकार की दुर्लभ क्षमताओं- प्रतिभाओं से वंचित, लेकिन हम अपने कुचिंतन, कुविचार व कुसंगति के प्रभाव से जीवन के सुफल को कुफल में बदलते चले जाते हैं।


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