प्रेम भरा भाव कई बार मनुष्य के दुखों को दूर करने में अचूक दवा का कार्य करता है
आप कितने ही विद्वान क्यों न हो जाएं, यदि जीवन में प्रेम नहीं उतरा, तो सब बेकार है। बड़े-बड़े भाषण देने का कोई लाभ नहीं।
कहते हैं, कोई युवक नदी किनारे जब भी जाता था, एक कबूतर उसके कंधे पर अनायास ही प्रेमपूर्वक आकर बैठ जाता। एक दिन युवक के मन में उसे पकड़ने का भाव आया और जैसे ही उसने कबूतर को पकड़ना चाहा, पलक झपकते ही वह उड़ गया और दोबारा कभी नहीं आया। कारण स्पष्ट है। पशु-पक्षी भी अपना हित-अनहित जानते हैं। वे प्रेम को पहचानते हैं।
इसीलिए कबीरदास जी ने उसे विद्वान और ज्ञानी की संज्ञा नहीं दी, जो जीवनभर पुस्तकों के पठन-पाठन में उलझा रहे। उन्होंने ज्ञानी उसे कहा जो प्रेम के ढाई अक्षर को पढ़कर उसे जाने और समङो। प्रेम में बड़ी ताकत होती है। बस भाव शुद्ध हो और लक्ष्य उत्तम हो। आप कितने ही विद्वान क्यों न हो जाएं, यदि जीवन में प्रेम नहीं उतरा, तो सब बेकार है। बड़े-बड़े भाषण देने का कोई लाभ नहीं। यदि ज्ञान के दो शब्द भी प्यार से किसी को बोले या समझाए जाएं, तो नि:संदेह उस बात का दीर्घकालिक और गहरा प्रभाव पड़ता है। प्रेम के वश में तो स्वयं भगवान भी हैं। प्रेम भरा भाव कई बार मनुष्य के दुखों को दूर करने में अचूक दवा का कार्य करता है। प्रेम की भाषा बोलने पर लगता है कि फूल बरस रहे हैं। चिंतित और निराश व्यक्ति का मन खिलखिला उठता है। प्रेम जीवन का आधार है। जो प्रेम वाले होते हैं, उनका सम्मान समाज के हर वर्ग के लोग करते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जो जीवन में प्रेम की सच्ची सार्थकता को दर्शाते हैं।
बच्चों को भी डांट-डपट की भाषा से शायद समझाना मुश्किल होता है, लेकिन प्रेम की भाषा का उन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनके जीवन को सुखमय बनाने के लिए उनमें संस्कार का भाव भरने के लिए उनके अंदर प्रेम के बीज बोएं। प्रेम से कई बार दुश्मन भी आपका प्रशंसक बन जाता है। प्रेम के दो बोल किसी निराश्रित या फिर असहाय से बोलकर तो देखें, दुआ मिलेगी। वृद्ध मां-बाप को गले लगाएं। आशीर्वाद जीवन की दशा और दिशा बदल देगा। जीवन में प्रेम रूपी पुष्पों के खिलने से समग्र जीवन के प्रति आपका नजरिया बदल जाता है। निराशा, घृणा, ईष्र्या, लोभ और ¨हसा आदि नकारात्मक भाव खत्म हो जाते हैं। प्रेम एकतरफा नहीं होता। जिन लोगों से आप प्रेम करते हैं वे भी आपके प्रति प्रेम और सदाशयता की अभिव्यक्ति करते हैं।