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क्षमा आत्मा का स्वभाव है

सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र का अलंकरण आत्मा को सुसज्जित कर दिव्यता की श्रेणी में ला देता है। तब कहीं जीवन में क्षमा का अवतरण होता है। क्षमा आत्मा का स्वभाव है। क्षमा का आध्यात्मिक सूत्र है-मैं सब जीवों को क्षमा करता हूं और सब जीव मुझे क्षमा करें।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 26 Nov 2014 08:39 AM (IST)Updated: Wed, 26 Nov 2014 10:19 AM (IST)
क्षमा आत्मा का स्वभाव है

सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र का अलंकरण आत्मा को सुसज्जित कर दिव्यता की श्रेणी में ला देता है। तब कहीं जीवन में क्षमा का अवतरण होता है। क्षमा आत्मा का स्वभाव है। क्षमा का आध्यात्मिक सूत्र है-मैं सब जीवों को क्षमा करता हूं और सब जीव मुझे क्षमा करें।

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सब जीवों से मेरा मैत्री भाव है, किसी से शत्रु भाव नहीं। इस प्रकार क्षमा को मन में, अंत:करण में स्थापित कर लेना और स्वभाव में आसीन कर लेना विशेष महत्व रखता है। जब क्षमा अंतस से उद्भासित हो रही होती है तो मानव जाने-अनजाने में अपनी बांहें फैलाकर गले लग जाना चाहता है। हृदय से वात्सल्य फूट पड़ता है, पर वर्तमान में मानव आंतरिक भावों पर पर्दा डालकर बाहरी संसार में अभिनय/नाटक करने लगा है। इसलिए पुण्य का वास्तविक लाभ नहीं ले पाता।

वर्तमान में सारी भागदौड़, आपाधापी, भौतिक पदार्थो के संचयन के लिए चल रही है। इस कारण क्रोध-प्रतिशोध, आतंकवाद, अत्याचार, उत्पीडऩ आदि नकारात्मक गुण क्षमा की विपरीत स्थिति में पनप रहे हैं। शासक-प्रशासक, धनवान-गरीब या फिर किसी व्यक्ति के हृदय में वीरता का प्रतिरूप क्षमा का स्नोत एक बार प्रस्फुटित हो जाए तो वह कभी सूखता नहीं। यह तो अलौकिक अक्षय भंडार है, जो समाप्त होता ही नहीं। ऐसी क्षमा मात्र संतपुरुषों में ही संभव हो पाती है। वास्तव में क्षमा जीवन में सुख-शांति की सवरेत्कृष्ट स्थिति को प्रदान करने वाली व्यवस्था है, अनुभूति है। क्षमा के बिना ज्ञान की ऊर्जा संयमित और संचित न होकर बिखर जाती है।

इसलिए आत्मिक और बौद्धिक ऊर्जा का संरक्षण करने के लिए क्षमा की विराट शांति को संचित रखना होता है। मानव जीवन में क्रोध, घृणा, ईष्र्या और अहंकार आदि नकारात्मक प्रवृत्तियों का परिणाम बड़ा ही भयानक होकर उभरता है। इसलिए इसे ऋण और अग्नि के समान वृद्धि होने से पूर्व समाप्त कर देना उचित होता है। अपेक्षाओं की पूर्ति न होने से खिन्नता पैदा होती है और वही क्रोध का आधार बनकर व्यवहार में क्षमा और विवेक को क्षीण कर देती है। क्षमा मानवीय सफलता की ही नहीं, बल्कि जीवन की सार्थकता की भी द्योतक है। आत्मिक समता और आध्यात्मिक क्षमा स्वाति-जल को मुक्ता बनाकर मुक्त-प्रदायनी बनती है, तो व्यावहारिक जीवन में क्षमा भी पंकज पत्र पर ओस बिंदु-सी मुक्ता का आभास देकर हर्षानंद से भर देती है।


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