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जीवन में हर मनुष्य आनंद चाहता है

जीवन में हर मनुष्य आनंद चाहता है। वह इसलिए कि यह जीवन परमानंद का अंश है। यानी मानव अंश है, तो परमपिता अंशी हुआ। इस आनंद की प्राप्ति के लिए परमपिता ने वैविध्यपूर्ण संरचना की है। हमारी ज्ञानेंद्रियों से मन-मस्तिष्क प्रभावित होता है। इसका आशय हुआ कि ज्ञानेंद्रियां यदि आनंद

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 28 May 2015 12:37 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2015 12:39 PM (IST)
जीवन में हर मनुष्य आनंद चाहता है

जीवन में हर मनुष्य आनंद चाहता है। वह इसलिए कि यह जीवन परमानंद का अंश है। यानी मानव अंश है, तो परमपिता अंशी हुआ। इस आनंद की प्राप्ति के लिए परमपिता ने वैविध्यपूर्ण संरचना की है। हमारी ज्ञानेंद्रियों से मन-मस्तिष्क प्रभावित होता है। इसका आशय हुआ कि ज्ञानेंद्रियां यदि आनंद संग्रहित कर रही हैं, तो जीवन में आनंद और यदि दुख संग्रहित कर रही हैं तो जीवन कष्टदायी और नर्क जैसा हो जाता है। सभी जानते हैं कि ज्ञानेंद्रियों में आंख, कान, नाक, जीभ, और त्वचा को शामिल किया जाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह आनंद के लिए इन सारी ज्ञानेंद्रियों से संतुलन, समन्वय और सामंजस्य स्थापित करके चले। भौतिकवादी युग में हर काम इसके विपरीत हो रहा है।
जो मनुष्य सिर्फ भौतिक पदार्थो के पीछे भागेगा, उसे प्रचुर मात्र में भौतिक संपत्ति तो हासिल हो जाएंगी, लेकिन जरूरत से ज्यादा भौतिकता साथ में दुख, कष्ट, तनाव, क्रोध और विकृति भी लाती है। जिस प्रकार कंप्यूटर साइंस में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों की भूमिका है, उसी प्रकार शरीर रूपी हार्डवेयर के साथ चिंतन रूपी सॉफ्टवेयर को भी वायरस मुक्त रखा जाना चाहिए। पांचों ज्ञानेंद्रियों में आंख के जरिये प्रकृति से मिलने वाले आनंद यानी उगते हुए सूर्य, चंद्रमा, तारे-सितारे, पेड़-पौधे, नदियों-झरनों से निकलने वाली आनंद रूपी ऊर्जा हमें प्राप्त होती है। इसी तरह कानों से सुमधुर संगीत, भजन, कीर्तन, स्तुति और श्लोक से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों को ग्रहण करना चाहिए। नासिका से फूलों की सुगंध, प्राकृतिक परिवेश में योग साधना से ऑक्सीजन की ऊर्जा लेनी चाहिए और जीभ से स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्र्थो का रस लेना चाहिए। साथ ही शरीर के माध्यम से माता-पिता, वृद्धजनों की सेवा व चरणस्पर्श से शक्ति अर्जित करना चाहिए। फिर शत-प्रतिशत गारंटी है कि जीवन आनंदमय ही नहीं, बल्कि आनंद का धाम और परमानंद सदृश हो जाएगा। फिर वही व्यक्ति जो तनाव में है और दवाओं से सुकून तलाश रहा है, वह स्वयं आनंददाता बनकर आनंद और प्रसन्नता बांटता दिखाई पड़ेगा। इस प्रकार हम अपने बहुमूल्य जीवन को सार्थक बना सकेंगे तथा समाज को भी सकारात्मक योगदान दे सकेंगे। दो और दो पांच का गणित करेंगे तो सदैव परेशान ही रहेंगे और बेवजह का तनाव पैदा करेंगे।


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