अहंकार भी पतन का एक कारण है
छह विकारों में मद अर्थात अहंकार पतन का चौथा कारण द्वार है। यह मनुष्य का स्वयं अर्जित किया हुआ मनोरोग है। रोग का अर्थ होता है शरीर की प्रक्रिया को विकृत कर देना। जिस प्रकार भला-चंगा हाथी मदांध हो जाता है तो वह विवेक खो देता है और गलत आचरण करने लगता है उसी प्रकार मनुष्य जब मदांध हो जाता है तब उसका विवेक नष्ट हो जाता है। विवे
छह विकारों में मद अर्थात अहंकार पतन का चौथा कारण द्वार है। यह मनुष्य का स्वयं अर्जित किया हुआ मनोरोग है। रोग का अर्थ होता है शरीर की प्रक्रिया को विकृत कर देना। जिस प्रकार भला-चंगा हाथी मदांध हो जाता है तो वह विवेक खो देता है और गलत आचरण करने लगता है उसी प्रकार मनुष्य जब मदांध हो जाता है तब उसका विवेक नष्ट हो जाता है।
विवेक के बगैर मनुष्य पशु से भी बदतर हो जाता है। पशु का अर्थ होता है जो पाश में बंधा हो। पशु को इसलिए बांधा जाता हैं कि वह अविवेकी प्राणी है। कभी-कभी मदांध व्यक्ति को भी पाश में बांधा जाता है ताकि वह गलत आचरण न करे। ऐसा इसलिए, क्योंकि, पशुता केवल पशु का ही धर्म नहीं है, कुछ मनुष्य भी पशुतुल्य बन जाते हैं, जब उनका अपना सब कुछ नष्ट हो जाता है और वे गलत आवरण ओढ़ लेते हैं। मद मनुष्य का प्राकृतिक गुण नहीं है। इसे हम अपने बारे में गलत खयालों के कारण धारण कर लेते हैं। हमारे संतों ने इसीलिए कहा कि मदांध व्यक्ति भीतर से पूरी तरह खाली होता है और इस खालीपन को भरने के लिए वह कभी काम के माध्यम से तो कभी क्रोध के माध्यम से और कभी लोभ के माध्यम से अपने गलत अभिमान को प्रदर्शित कर दूसरों के बीच अपनी स्वीकृति चाहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मद का अर्थ ही होता है जो आप नहीं है, वैसा होने का आचरण करना। फलों से भरी डाली झुकी रहती है, लेकिन सूखी डाली तनी खड़ी रहती है। इस सूखी डाली को भी फल होने का गौरव चाहिए। इसीलिए वह
फलयुक्त होने का व्यवहार करती है। हमारे जीवन में भी वैसे लोग आते हैं जो स्वयं तो कंगाल होते हैं, लेकिन कभी अपनी बातों से, कभी व्यवहार से ऐसा आचरण करने लगते हैं जिससे लोग उनकी झूठी शान को वास्तविक समझ लें। मदांध व्यक्ति बाहर और भीतर दोनों तरफ से दरिद्र होता है, कंगाल होता है और वह अपनी दरिद्रता को छिपाने के लिए बार-बार घोषणा करता रहता है कि मैं दरिद्र नहीं हूं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यदि व्यक्ति अपने बड़े होने की सफाई दे, तो निश्चित रूप से वह बड़ा नहीं है। यही कारण है कि जो मदांध होते हैं उसे किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। उनकी राय में मदांध व्यक्ति अपनी विकृतियों का शिकार होता है। साधना के क्षेत्र में मदांध व्यक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है।