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भक्ति मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ संपदा है

भक्ति तत्व भौतिक जगत से जुड़े हुए हमारे अस्तित्व-बोध को आध्यात्मिक जगत की परम अनुभूति से भली-भांति जोड़ देता है। हम सभी सामाजिक भावना से भी ओतप्रोत हैं, जिसकी सीमा भौगोलिक भावना से बड़ी है। सामाजिक भावना भौगोलिक सीमा में बंधी नहीं रहती, बल्कि किसी विशेष समुदाय से संबंधित लोगों

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 19 Dec 2014 09:32 AM (IST)Updated: Fri, 19 Dec 2014 09:36 AM (IST)
भक्ति मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ संपदा है
भक्ति मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ संपदा है

भक्ति तत्व भौतिक जगत से जुड़े हुए हमारे अस्तित्व-बोध को आध्यात्मिक जगत की परम अनुभूति से भली-भांति जोड़ देता है। हम सभी सामाजिक भावना से भी ओतप्रोत हैं, जिसकी सीमा भौगोलिक भावना से बड़ी है। सामाजिक भावना भौगोलिक सीमा में बंधी नहीं रहती, बल्कि किसी विशेष समुदाय से संबंधित लोगों के मस्तिष्क पर छाई रहती है।

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इससे प्रभावित मनुष्य केवल अपने समुदाय के कल्याण के बारे में ही सोचता रहता है। अपने लोगों का कल्याण करने की धुन में दूसरों का अहित करने से भी नहीं हिचकिचाता। इसके अतिरिक्त मानवतावाद एक अन्य भावना है। अतीत में इस धरती पर ऐसे बहुत से लोगों ने जन्म लिया है, जिनकी आंखें पीडि़त मानवता के दुखों को देखकर आंसुओं से भींग गईं। मनुष्य को समझबूझकर चलना होगा। अपने अस्तित्व की रक्षा करते समय अपने परिवेश को भी बचाना होगा।

मनुष्य के भीतर प्राणों का जो छंदमय स्पंदन है वही मनुष्य को मानवतावाद की ओर आकर्षित करता है। इसी सत्ताबोध को यदि समग्र विश्व ब्रह्मांड में फैला दिया जाए, तभी मनुष्य के रूप में हमारा अस्तित्व पूरी तरह सार्थक होगा। अपने आंतरिक प्रेम को समस्त जीव-जगत में फैलाने की यह जो भावना है, इसके पीछे एक विराट सत्ता की उपस्थिति को भी स्वीकार करना होगा। वह विराट सत्ता मानवतावाद की भावना को समस्त दिशाओं में फैलाएगी।

हमारे मन में संपूर्ण जीव-जगत के प्रति ममत्व पैदा करेगी। भक्ति मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ संपदा है। इस विश्व ब्रह्मंड के समस्त अणुओं, परमाणुओं, इलेक्ट्रान, न्यूट्रान आदि अदृश्य शक्ति ईश्वर की ही अभिव्यक्तियां हैं। जो लोग इस तथ्य को अच्छी तरह समझकर, इस अनुभूति को अपने हृदय में हमेशा संजोकर रखे रहते हैं, उन्हीं का अस्तित्व और जीवन सार्थक है। वही सच्चे भक्त हैं।

अंतत: भक्ति तत्व को पूरे विश्व में फैलाना उनके जीवन का उद्देश्य हो जाता है। इस तथ्य को केंद्रित कर मानवतावाद की भावना को, मानवजाति की सीमा को तोड़ते हुए, उसे जब संपूर्ण चर-अचर जगत में फैला दिया जाता है, उसी भावना का नाम मैंने नव्य मानवतावाद रखा है। यह नव्य-मानवतावाद लोगों को मानवतावाद के धरातल से ऊपर उठाकर उन्हें विश्व एकतावाद में स्थापित कर समस्त जगत और जीवों को अपना समझकर उनसे प्रेम करना सिखाएगा।


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