उत्साह और उमंग बिना जीना व्यर्थ है
महात्मा गांधी कहते हैं कि जब कर्तव्य का संघर्ष हो तब तुम्हारे भीतर बोलने वाली शांत-सूक्ष्म ध्वनि ही सदैव अंतिम निर्णायक होनी चाहिए।
उत्साह और उमंग बिना जीना व्यर्थ है। इसलिए हर व्यक्ति को उत्साह के साथ जीवन जीना चाहिए। जीवन में उत्साह तभी होगा जब कोई उद्देश्य होगा। इसलिए हर मनुष्य को अपना उद्देश्य तय करना चाहिए। उद्देश्य के बिना मनुष्य का जीवन पशु समान होता है। उद्देश्य मन मुताबिक और रचनात्मक होना चाहिए ताकि उसकी पूर्ति में हम उत्साह महसूस करें।
विश्व में जितने भी महान और महत्वपूर्ण आंदोलन हुए हैं, वे उत्साह से ही सफल हुए हैं। उत्साह और मनुष्य की उम्र में कोई संबंध नहीं होता है। इसलिए कई बार हम देखते हैं कि किसी बुजुर्ग ने ऐसा कारनामा कर दिखाया जो ढलती उम्र में असंभव-सा लगता है। जैसे सेवानिवृत्ति के कुछ सालों बाद ही ज्यादातर बुजुर्ग बिस्तर पकड़ लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो इस उम्र में पहाड़ चढ़ने सरीखे कठिन कार्यों को अंजाम देते हैं और समाज को नई राह दिखाते हैं। ऐसे लोगों की उम्र भले ही बढ़ती जा रही हो, लेकिन वे जीवन के प्रति अपने उत्साह को कम नहीं होने देते हैं। इसी कारण वे हमेशा प्रसन्नचित रहते हैं और असंभव कार्य को सरलता व सहजता से करते हैं। उत्साह में कार्य करने की ऊर्जा स्वत: ही मिलने लगती है।
महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कि उत्साह से बढ़कर कोई दूसरा बल नहीं है और उत्साही मनुष्य के लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है। यदि व्यक्ति चाहे तो पूरी जिंदगी उत्साह-उमंग में काट सकता है वरना शिकायतों के लिए संपूर्ण जीवन भी कम पड़ जाए। दुखी रहने से जीवन में सफलता के रास्ते दिखना बंद हो जाते हैं, क्योंकि उस दुख भरी परिस्थिति में उदासी के कारण नकारात्मक विचार हावी हो जाते हैं। वहीं खुश रहने से जीवन में सकारात्मक सोच उत्पन्न होती है जिससे हमारा बुरा समय जल्द विदा लेता है। जीवन मुश्किल नहीं है, बल्कि हम इसे अपनी सोच से कठिन या आसान बनाते हैं। अगर हम यह बात गांठ बांध लें कि परिस्थितियां चाहे कैसी ही क्यों न आए, लेकिन हमें बुलंद हौसलों से उनका मुकाबला करना है तो बुरे समय को भी हम हंसते हुए काट लेते हैं। परिस्थितियों के बजाय हमें स्वयं से डरना चाहिए। स्वयं से पूछिए कि क्या मेरा रास्ता सही है? यदि आप का जवाब हां है तो फिर कुछ भी सोचे बिना आगे बढ़ते जाओ। महात्मा गांधी कहते हैं कि जब कर्तव्य का संघर्ष हो तब तुम्हारे भीतर बोलने वाली शांत-सूक्ष्म ध्वनि ही सदैव अंतिम निर्णायक होनी चाहिए।