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छठ महापर्व का खरना आज

लोक आस्था का महापर्व छठ सोमवार को नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हो गया। छठव्रतियों ने गंगा की पावन धारा में स्नान किया। भगवान भास्कर एवं मां तुलसी की पूजा-अर्चना की। नहाय-खाय, कद्दू भात चावल, दाल व लौकी की सब्जी का प्रसाद घरों में पूजा-अर्चना की गई। प्रसाद के रूप म

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 28 Oct 2014 12:22 PM (IST)Updated: Tue, 28 Oct 2014 04:26 PM (IST)

लोक आस्था का महापर्व छठ सोमवार को नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हो गया। छठव्रतियों ने गंगा की पावन धारा में स्नान किया। भगवान भास्कर एवं मां तुलसी की पूजा-अर्चना की।

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नहाय-खाय, कद्दू भात

चावल, दाल व लौकी की सब्जी का प्रसाद घरों में पूजा-अर्चना की गई। प्रसाद के रूप में अरवा चावल, चने की दाल एवं कद्दू की सब्जी बनाई गई। सबसे पहले छठव्रतियों ने उसे ग्रहण किया।

आज खरना

दिनभर उपवास के बाद शाम को व्रती स्नान कर पूजा-अर्चना करेंगे। उसके बाद खीर व रोटी प्रसाद के रूप में लेंगे। नहाय-खाय के साथ सूर्य आराधना का पर्व छठ शुरू हो गया। मंगलवार को व्रती खरना करेंगे। इधर, छठ पूजा को लेकर सोमवार को बाजार में खरीदारों की भीड़ रही। दुकानों मे सूप, दौरा, ईख, नारियल एवं विभिन्न प्रसादों की बिक्री खूब हुई। बुधवार को अस्तचलगामी सूर्य को एवं गुरुवार को उदीयमान सूर्य को व्रती अ‌र्घ्य प्रदान करेंगे। पूजा को लेकर सभी घाटों की साफ-सफाई कर ली गई है।

बड़ी संख्या में छठव्रतियों ने छठ घाट में नहा धोकर भगवान सूर्य को न्योता दिया और घर आकर अरवा चावल, सेंधा नमक युक्त चना, दाल व कद्दू की सब्जी समेत आरू की सब्जी बनाकर उसका सेवन किया। छठ व्रतियों ने सुबह और शाम पारंपरिक रूप से छठी मइया के पावन गीतों का स्मरण किया। मंगलवार को दिनभर उपवास रहने के बाद देर शाम छठ व्रती खरना की पूजा करेंगी।

असीम लोक आस्था का महापर्व छठ। भगवान भास्कर के प्रति अगाध श्रद्धा का पर्व। नियम और निष्ठा के पालन का पावन पर्व। नहाय खाय के साथ चार दिवसीय यह महापर्व शुरू हो गया है। हर ओर सूर्य भगवान की महिमा के गीतों की गूंज। व्रतियों ने स्नान-ध्यान और पूजा कर अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी का प्रसाद ग्रहण किया। साथी ही अधिक से अधिक लोगों में प्रसाद का वितरण भी किया। मंगलवार को व्रती खरना करेंगी।

शहर में ग्रामीण परिवेश की झलक मिली- वातावरण में गुड़, घी और फलों की मीठी खुशबू। कहीं मिट्टी तो कहीं ईंट के चूल्हे बने हैं। किसी को जलावन के रूप में लकड़ियां मिलीं, तो किसी ने गैस चूल्हे का सहारा लिया। किसी घर से गोइंठा सुलगने का धुआं निकलते दिखा। प्रसाद बनाने के काम में मशगूल रहीं व्रती और सहयोग करनेवाले भी। शहर में ग्रामीण परिवेश की झलक मिली।

बुधवार को षष्ठी की संध्या अस्तचलगामी सूर्य की पूजा के लिए बड़ी संख्या में व्रती घाटों पर एकत्रित होंगी। सूर्य पूजन के लिए कहीं आंगन तो कहीं छत पर आस्था के पोखर भी तैयार किए जा रहे हैं। यह आस्था ही नहीं बुजुर्गो के सम्मान का भी महापर्व है। यह पूजा हमें यह भी सीख देती है कि डूबते सूर्य की तरह उम्र की ढलान की ओर जाते बुजुर्गो को उतना ही शक्तिशाली मानो जितना अस्ताचलगामी सूर्य को। इन बुजुर्गो में अकूत ज्ञान का भंडार है। इनके अनुभव का भान हमेशा परिवार व समाज को होना चाहिए। बुजुर्गो की अहमियत समय के साथ कम नहीं होनी चाहिए। खासकर नई पीढ़ी को एहसास होना चाहिए, जो भौतिकवादी युग की आधुनिक चकाचौंध में यूं खो जाते हैं कि अवसान की ओर जाते सूर्य (बुजुर्ग) की चमक इन्हें दिखाई नहीं देती।


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