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गुरु साक्षात परब्रह्म का स्वरूप है

भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य के संबंध को अत्यंत पावन और गौरवपूर्ण माना गया है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु साक्षात परब्रह्म का स्वरूप है। इसलिए हमें ईश्वर से पूर्व गुरु की वंदना करनी चाहिए। जीवन में प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। गुरु वही है जिसे देखकर मन प्रणाम करे, जिनके समीप

By Edited By: Published: Tue, 01 Oct 2013 02:20 PM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2013 02:24 PM (IST)
गुरु साक्षात परब्रह्म का स्वरूप है

भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य के संबंध को अत्यंत पावन और गौरवपूर्ण माना गया है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु साक्षात परब्रह्म का स्वरूप है। इसलिए हमें ईश्वर से पूर्व गुरु की वंदना करनी चाहिए। जीवन में प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। गुरु वही है जिसे देखकर मन प्रणाम करे, जिनके समीप बैठने से हमारे दुगरुण दूर होते हैं। गुरु वह ऊर्जावान और ज्ञान का पुंज है जो हमारे भीतर आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करके सत्य से हमारा साक्षात्कार कराता है। गुरु के सानिध्य से जीवन की दिशा और दशा, दोनों बदल जाती है। उदाहरणस्वरूप अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वाणी के द्वारा भारत की संस्कृति का परचम संपूर्ण विश्व में लहराने वाले स्वामी विवेकानंद को जब गुरु रामकृष्ण परमहंस का वरदहस्त प्राप्त हुआ तब वह नरेंद्रनाथ से स्वामी विवेकानंद के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी प्रकार गुरु द्रोणाचार्य की शिक्षा, प्रेरणा और आशीर्वाद ने अजरुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में प्रतिष्ठित किया।1वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का निरंतर ह्रास होता जा रहा है। गुरु शिष्य के पवित्र संबंधों पर भी इसका प्रभाव दिखाई पड़ रहा है। समाज में आवश्यकता है, ऐसे गुरुओं की जो दया, क्षमा, सदाचार इत्यादि मानवीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए धैर्य, विवेक और त्याग आदि सद्गुणों के माध्यम से शिष्य को अंधकार से निकाल कर प्रकाश की ओर ले चलें। इस प्रकार मानव मन में व्याप्त विष रूपी बुराई को दूर करने में गुरु का विशेष योगदान होता है, परंतु सद्गुरु बड़े भाग्य से मिलता है। सद्गुरु की तलाश शिष्य को ही नहींहोती, बल्कि गुरु भी अपने ज्ञान की धरोहर को सुरक्षित हाथों में सौंप कर परमानंद की अनुभूति करता है। शिष्य के समर्पण और श्रद्धा भाव को देखकर उसका अंतर्मन आश्वस्त हो जाता है। वह शिष्य की कमियों को धैर्यपूर्वक सुधारते हुए उसे दिव्य ज्ञान प्रदान करता है। सौभाग्यवश ऐसे स्वयंसिद्ध गुरु का संरक्षण यदि किसी को भी प्राप्त हो जाए, तो उसके जीवन में संकट रूपी बादलों के छाने के बावजूद उसका मन कभी विचलित नहींहोता। कल्याण के मार्ग में प्रवृत्त करने वाले ऐसे गुरुजनों को शत-शत नमन।

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