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मां दुर्गा के इन तीन दिनों की पूजा से घर में कभी भी धन व समृद्धि की कमी नहीं होती

सम्‍पूर्ण संसार की उत्पित्ति का मूल कारण शक्ति है जिसे ब्रम्‍हा, विष्‍णु व शिव तीनों ने मिलकर मां नवदुर्गा के रूप में श्रृजित किया था। इसलिए मां दुर्गा में ब्रम्‍हा, विष्‍णु व शिव तीनों की शक्तियां हैं ।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 06 Oct 2016 12:42 PM (IST)Updated: Fri, 07 Oct 2016 10:16 AM (IST)
मां दुर्गा के इन तीन दिनों की पूजा से घर में कभी भी धन व समृद्धि की कमी नहीं होती

नवरात्रि वर्ष में चार बार पौष, चैत्र, आषाढ व अश्विन महिनों की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय होता है, लेकिन चैत्र मास व आश्विन मास की नवरात्रि को ही अधिक महत्व दिया जाता है जबकि दिपावली से पहले आने वाली आश्विन मास की नवरात्रि को भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व प्राप्त है क्योंकि पितृपक्ष के 16 दिनों की समाप्ति के बाद आश्विन मास की नवरात्रि का पदार्पण होता है और इसी नवरात्रि से सम्पूर्ण भारत में लगातार त्योहारों का समय शुरू हो जाता है जो कि दिपावली के बाद लाभ पांचम और इससे भी आगे छोटी दिपावली तक चलता है और इसीलिए आश्विन मास की इस नवरात्रि को हिन्दु धर्म में अति महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

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नवरात्रि शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों नव व रात्रि का संयोजन है जो इस त्यौहार के लगातार नौ रातों तथा दस दिनों तक मनाए जाने को इंगित करता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार दुर्गा का मतलब जीवन के दु:ख कॊ हटानेवाली होता है और नवरात्रि, मां दुर्गा को अर्पित एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ दिव्य रूपों की पूजा-अर्चना, उपासना व आराधना आदि की जाती है। मां दुर्गा के नौ दिव्य रूपों का नाम व संक्षिप्त वर्णन निम्नानुसार हैं:-

सुंदरकाण्ड के पाठ से बजरंग बली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है

शैलपुत्री – पहाड़ों की पुत्री होता है।

ब्रह्मचारिणी – ब्रह्मचारीणी।

चंद्रघंटा – चाँद की तरह चमकने वाली।

कूष्माण्डा – पूरा जगत उनके पैर में है।

स्कंदमाता – कार्तिक स्वामी की माता।

कात्यायनी – कात्यायन आश्रम में जन्मी।

कालरात्रि – काल का नाश करने वाली।

महागौरी – सफेद रंग वाली मां।

सिद्धिदात्री – सर्व सिद्धि देने वाली।

नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण नौ दिनाें की शुरूआत हिन्दु धर्म के पंचांग के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन से होती है आैर अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी, जिसे विजया दशमी अथवा दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, पर समाप्त होती है।

नवरात्रि का त्यौहार मूलत: मां दुर्गा के तीन मुख्य रूपों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती को समर्पित किया गया है और इन तीनों देवियों को नवरात्रि के तीन-तीन दिन के समूहों में विभाजित किया गया है।

नवरात्रि के प्रथम तीन दिन के समूह को देवी दुर्गा को समर्पित किया गया हैं, जो कि शक्ति और ऊर्जा की देवी हैं और मान्यता ये है कि मां दुर्गा के इन तीन दिनों की आराधना से मनुष्यों को शक्ति व उर्जा की प्राप्ति होती है, जिससे वे अपने जीवन में मनचाहे कार्यों में सफलता प्राप्त करते हैं।

नवरात्रि के अगले तीन दिन के समूह को देवी लक्ष्मी को समर्पित किया गया है, जो कि धन और समृद्धि की देवी है और मान्यता ये है कि मां दुर्गा के इन तीन दिनों की पूजा-अर्चना व आराधना से घर में कभी भी धन व समृद्धि की कमी नहीं होती। जबकि नवरात्रि के अंतिम तीन दिनों के समूह को देवी सरस्वती को समर्पित किया गया है और मान्यता ये है कि मां दुर्गा के इन तीन दिनों में की गई आराधना से भौतिक व अध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है, जो कि जीवन काे उचित दिशा में लेजा ने में सहायक होती हैं।

नवरात्रि के अन्तिम तीन दिनों को मां सरस्वती को इसीलिए समर्पित किया गया है ताकि पहले तीन दिनों में प्राप्त होने वाली उर्जा व शक्ति तथा अगले तीन दिनों में प्राप्त होने वाली धन व समृद्धि को न्यायपूर्ण तरीके से केवल ज्ञान द्वारा ही नियंत्रण में रखा जा सकता है और हिन्दु धर्म के अनुसार मां सरस्वती, ज्ञान की देवी हैं।

भारतीय संस्कृति में शक्ति की उपासना मां के रूप में की जाती है और माना जाता है कि सम्पूर्ण संसार की उत्पित्ति का मूल कारण शक्ति ही है जिसे ब्रम्हा, विष्णु व भगवान शिव तीनों ने मिलकर मां नवदुर्गा के रूप में श्रृजित किया था। इसलिए मां दुर्गा में वास्तव में ब्रम्हा, विष्णु व भगवान शिव तीनों की शक्तियां हैं अत: नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की आराधना, उपासना, पूजा-पाठ आदि करने से ब्रम्हा, विष्णु व भगवान शिव, तीनों ही की आराधना हो जाती है और इसीलिए नवरात्रि के दौरान लगातार नौ रात्रियों तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की विभिन्न तरीकों से उपासना की जाती है।

नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों यानी विशेष रात्रियों का बाेध हाेता है और इस समय शक्ति के नौ रूपों की उपासना की जाती है। इन रात्रियों को सिद्ध रात्रियों के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि भारतीय तंत्र शास्त्र के अनुसार रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक है और मान्यता ये है कि इन रात्रियों में तंत्र-मंत्र की साधना करने पर अन्य दिनों की तुलना में ज्यादा जल्दी से सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। इसलिए नवरात्रि की ये अवधि तंत्र-मंत्र साधनाओं के लिए भी विशेष उपयोगी व बलशाली मानी गई हैं।

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