अक्षय तृतीया पर हुए थे इतने सारे शुभ कार्य
पंडितों-ज्योतिषियों से पूछे बिना जिस मुहूर्त में ब्याह या अन्य संस्कार संपन्न किए जा सकते हैं वह अबूझ मुहूर्त बैशाख शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया को माना जाता है, यदि आपके घर में
पंडितों-ज्योतिषियों से पूछे बिना जिस मुहूर्त में ब्याह या अन्य संस्कार संपन्न किए जा सकते हैं वह अबूझ मुहूर्त बैशाख शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया को माना जाता है, यदि आपके घर में कोई शुभ कार्य करना हो और पंडित-पुजारियों से संपर्क नहीं हो रहा हो अथवा किसी अन्य मुहूर्त में परिवार में कोई न कोई अड़चन आ रही हो तो ऐसे समय में बिना किसी से मुहूर्त पूछे अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य निपटा लेना चाहिए।
चाहे ग्रह अनुकूल हो या न हो अक्षय तृतीया के दिन सारे ग्रहों का दोष समाप्त हो जाता है इसीलिए इसे महामुहूर्त की संज्ञा दी गई है। भारतीय सनातन संस्कृति में अक्षय तृतीया को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इस दिन रामायण-महाभारतकालीन अनेक प्रसंग घटित हुए थे, साथ ही भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म भी इसी दिन हुआ था। यही कारण है कि इसे अबूझ मुहूर्त कहा गया है।
हिन्दू संवत्सर के बैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया मनाई जाती है, छत्तीसगढ़ में इसे 'अक्ती' के नाम से जाना जाता है। गांव-गांव में अक्ती पर शादियां होती हैं, अक्ती के दिन शादी करने की इतनी अधिक मान्यता है कि जिस घर में किसी युवक-युवती का ब्याह नहीं हो रहा तो भी उस घर के बच्चे अपने गुड्डा-गुड़िया का ब्याह रचाते हैं और विवाह की खुशियां मनाई जाती है। बच्चों के संग अभिभावक भी शामिल होते हैं।
इस बार अक्ती की धूम 9 मई को रहेगी। सोशल मीडिया में भी छाया अक्षय तृतीया का महत्व इस बार सोशल मीडिया व्हाट्स एप व फेसबुक पर भी चर्चा का केन्द्र बना हुआ है, लोग अपने परिचितों को अक्षय तृतीया के महामुहूर्त होने का संदेश भिजवा रहे हैं, संदेशों में बताया जा रहा है कि अक्षय तृतीया के दिन क्या-क्या घटनाएं हुई थी और इस वजह से इसे महामुहूर्त की संज्ञा दी जाती है। सोशल मीडिया में छाए कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग के संदेश
आज ही के दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, मां अन्नपूर्णा का जन्म की मान्यता, मां गंगा का अवतरण द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज के ही दिन बचाया था। कुबेर को आज के दिन खजाना मिला था। सतयुग और त्रेतायुग का प्रारब्ध आज के दिन हुआ था। कृष्ण और सुदामा का मिलन भी अक्षय तृतीया पर हुआ था।ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण। प्रसिद्ध तीर्थ बद्री नारायण का कपाट आज के दिन खोले जाते हैं।
वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर में श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं अन्यथा सालभर चरण वस्त्रों से ढके रहते हैं।महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयंसिद्ध मुहूर्त है, कोई भी शुभ कार्य का प्रारंभ किया जा सकता है।