Move to Jagran APP

चेतना के स्वरूप

पश्चिमी मनोवैज्ञानिक जिसे बोध कहते और समझते हैं, वह बालबोध है। मनोवैज्ञानिकों की खोजें अभी अविकसित स्थिति में हैं। इनके द्वारा मानवीय चेतना के बाहरी एवं छिछले स्वरूपों का ही अध्ययन संभव हो सका है, जबकि वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति तब होती है, जब हम आंतरिक गहरा

By Edited By: Published: Mon, 03 Mar 2014 11:16 AM (IST)Updated: Mon, 03 Mar 2014 11:26 AM (IST)
चेतना के स्वरूप

पश्चिमी मनोवैज्ञानिक जिसे बोध कहते और समझते हैं, वह बालबोध है। मनोवैज्ञानिकों की खोजें अभी अविकसित स्थिति में हैं। इनके द्वारा मानवीय चेतना के बाहरी एवं छिछले स्वरूपों का ही अध्ययन संभव हो सका है, जबकि वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति तब होती है, जब हम आंतरिक गहराइयों में प्रवेश करते हैं। यह ज्ञान प्राप्त करने से पहले इंसान को कई बातों पर ध्यान देना पड़ता है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं..

loksabha election banner

मानवी-चेतना जल में पड़ी बर्फशिला की भांति है, इसका जितना हिस्सा जागते समय बाहरी क्रिया-कलापों के माध्यम से प्रकट होता है, उससे कई गुना अंदर है।

मनोनिग्रह का स्वत: स्फूर्त फल है-

व्यक्तित्व की पूर्णता। ऐसा पूर्ण व्यक्ति

प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सफल होता है। मन का नियमन उसे स्थिरचित्त बनाता है। दरअसल, चंचलता का अभाव ही शांति को जन्म देता है। मन के प्रकाशित होने पर सब कुछ प्रकाशित हो जाता है।

बच्चे का विकास बहुत अधिक माता-पिता, शिक्षक, गुरु एवं वातावरण पर निर्भर करता है। उपेक्षा और उदासीनता के द्वारा जिस प्रकार बच्चों को क्रूर एवं निकम्मा बनाया जाता है, उसी प्रकार प्रयत्न और भावनापूर्वक उन्हें तेजस्वी और मनस्वी भी बनाया जा सकता है।

शरीर और मन की जितनी भी महान शक्तियां हैं, वे तुम्हारे औजार हैं। इंद्रियों के तुम गुलाम नहीं हो। आदतें तुम्हें मजबूर नहीं कर सकतीं। मानसिक विकारों का कोई अस्तित्व नहीं होता है।

विधेयात्मक चिंतन की बार-बार पुनरावृति करने व उन विचारों को क्रमबद्ध रीति से सजाने की कला जिन्हें आती है, वे ही अपना भाग्य, दृष्टकोण और वातावरण बदल सकते हैं।

जीवन वस्तुत: संकल्प-बीज की एक लहराती हुई हरी-भरी फसल है। संकल्पशक्ति की साधना और आत्मनिरीक्षणसे व्यक्तित्व को इच्छित ऊंचाई तक पहुंचाया जा सकता है।

वांछनीय मन:स्थिति प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति अपने अंतर्जगत में प्रवेश करें। आत्मनिरीक्षण करें कि अंतरात्मा में कौन से गलत विचार, दुर्बल मंतव्य, निर्बल कल्पनाओं के घास-फूस उग आए हैं? कौन-सी चिंताएं उन्हें उद्विग्न कर रही हैं? कौन-कौन सी विषम परिस्थितियों की स्मृतियां मन को क्षुब्ध बना रही हैं।

अव्यक्त -मन रात्रि में अधिक तीव्रता से कार्य करता है। जिन भावनाओं को दृढ़ता से लेकर व्यक्ति सोता है, वे निद्रित अवस्था में अव्यक्त मन में चले जाते हैं। इसलिए सोने से पहले अच्छी पुस्तकों के कुछ अंश अवश्य पढ़ें।

(साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.