श्रुत-लेखन का आरंभ
महावीर स्वामी के दर्शन को पहली बार लिखित ग्रंथ के रूप में ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी (23 मई) को प्रस्तुत किया गया था। श्रुत पंचमी पर...
महावीर स्वामी के दर्शन को पहली बार लिखित ग्रंथ के रूप में ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी (23 मई) को प्रस्तुत किया गया था। श्रुत पंचमी पर...
महावीर स्वामी ने जो ज्ञान दिया, उसे श्रुत परंपरा के अंतर्गत अनेक आचार्यों ने जीवित रखा। महावीर केवल उपदेश देते थे और उनके प्रमुख शिष्य (गणधर) उसे सभी को समझाते थे। तीर्थंकर महावीर ने अपने ग्यारह गणधरों के माध्यम से अपने विचार शिष्यों तक पहुंचाए। महावीर की उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा में लगभग दो हजार वर्ष पूर्व धरसेनाचार्य का नाम आता है। मान्यता है कि गुजरात प्रांत में गिरनार पर्वत पर रहने वाले वयोवृद्ध धरसेनाचार्य को विचार आया कि उनके बाद महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का ज्ञान विलुप्त हो जाएगा।
क्योंकि तब महावीर की वाणी को लिखने की परंपरा नहीं थी। उसे सुनकर स्मरण किया जाता था, इसीलिए उसका नाम श्रुत था। धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि मुनियों को सैद्धांतिक देशना दी, जिसे सुन कर मुनियों ने ‘षटखंडागम’ नामक ग्रंथ रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को प्रस्तुत किया। इस दिन से श्रुत परंपरा को लिपिबद्ध परंपरा के रूप में प्रारंभ किया गया। यह दिवस श्रुत पंचमी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।