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वासंतिक नवरात्र पर विशेष: ऊर्जा का आह्वान

नवरात्र में मातृशक्ति की उपासना शक्ति अर्थात ऊर्जा के रूप में की जाती है। इस उपासना का मंतव्य स्वयं को परिमार्जित करके ऊर्जा का आज्जान करना है। वासंतिक नवरात्र पर विशेष.. आदि पुरुष कहे जाने वाले 'मनु' ने धर्म की परिभाषा दी है कि जो धारण करने योग्य हो, वह धर्म होता है। हम इस प

By Edited By: Published: Mon, 31 Mar 2014 12:03 PM (IST)Updated: Tue, 01 Apr 2014 01:26 PM (IST)
वासंतिक नवरात्र पर विशेष: ऊर्जा का आह्वान

नवरात्र में मातृशक्ति की उपासना शक्ति अर्थात ऊर्जा के रूप में की जाती है। इस उपासना का मंतव्य स्वयं को परिमार्जित करके ऊर्जा का आज्जान करना है। वासंतिक नवरात्र पर विशेष..

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आदि पुरुष कहे जाने वाले 'मनु' ने धर्म की परिभाषा दी है कि जो धारण करने योग्य हो, वह धर्म होता है। हम इस परिभाषा को नवरात्र जैसे विशुद्ध धार्मिक विधान पर भी लागू कर सकते हैं। इन नौ दिनों में मां दुर्गा की आराधना की जाती है। व्रत रखा जाता है। यथासंभव पवित्र जीवन जीने की कोशिश की जाती है। तो इसमें धारण करने योग्य क्या है?

धार्मिक दृष्टि से देखने पर तो यह सब निश्चित तौर पर कर्मकांड के हिस्से ही लगते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल, हमारे पूर्वजों ने जीवन से जुड़ी अपनी सभी वैज्ञानिक बातों को हमें प्रतीकों और मिथकों के माध्यम से बताया और इन सबको 'धर्म' का नाम दिया, ताकि आम लोग इनका विधिवत तरीके से श्रद्धापूर्वक पालन करें। तो आइए, देखते हैं कि इस नवरात्र का विज्ञान क्या है।

सबसे पहले बात करते हैं नवरात्र अर्थात नौ रातों की। नौ ही क्यों? इसके दो मुख्य कारण हैं। पहली बात तो यह कि भारतीय दर्शन में 108 का अंक अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसका कारण यह हो सकता है कि योगियों ने सौरमार्ग को सत्ताइस बराबर भागों में बांटा है, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। प्रत्येक नक्षत्र को चार बराबर पदों में बांटा गया है। इनका गुणनफल 108 होता है। इस प्रकार माला के 108 मनकों का जाप सौरमार्ग की परिक्रमा पूरी करने का प्रतीक है। 108 की सभी संख्याओं का जोड़ होता है नौ। इस नौ के अंक की खूबी यह है कि इस अंक का किसी भी संख्या से गुणा किया जाए, तो गुणनफल की संख्याओं का जोड़ नौ ही आएगा। इस प्रकार अंक नौ पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है। पूर्ण कौन है? मात्र ईश्वर ही पूर्ण है। इसलिए नौ का अंक ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है।

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन का मानना था कि संपूर्ण जगत मूलत: ऊर्जा से बना हुआ है। पदार्थ ऊर्जा के ही संगठित रूप हैं। पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है और ऊर्जा को पदार्थ में। हमारे यहां देवी को ऊर्जा के ही रूप में देखा गया है। देवी यानी कि रचनात्मकता से भरपूर वह शक्ति, जिसमें जन्म देने की क्षमता है, कुछ नया बनाने की क्षमता है। मान्यता है कि विश्व के आदिकाल में जब ब्रह्मा को इस संसार की रचना करने की इच्छा हुई, तो उन्हें नारी शक्ति का आज्जान करना पड़ा। यही कारण है कि भारत ने विष्णु एवं शिव जैसे महाशक्तिशाली देवों के साथ उनकी पत्नियों का विधान किया, ताकि ऊर्जा अपनी संपूर्णता को प्राप्त कर सके।

नवरात्र के नौ दिनों को तीन-तीन दिनों के तीन भागों में बांटा गया है। प्रथम तीन दिनों में मां दुर्गा की आराधना होती है। मां दुर्गा ने महिषासुर का विनाश किया था। इस प्रकार ये तीन हमें हमारे अंदर की आसुरी प्रवृत्तियों को समाप्त करने का संदेश देते हैं। आसुरी प्रवृत्तियां क्या हैं? घोर स्वार्थ, हिंसा वृत्ति, क्रोध, बुराइयां, अपवित्रताएं तथा दुर्भावनाओं को आसुरी प्रवृत्तियां माना जाता है। वस्तुत: वे भावना और विचार, जो नकारात्मक हों और ध्वंसात्मक हाें, इस श्रेणी में आते हैं। ऊर्जा के रूप में मां दुर्गा की आराधना से हम इन निम्न वृत्तियों से मुक्त होने का प्रयास करते हैं।

बीच के तीन दिन लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना के दिन होते हैं। लक्ष्मी जी को धन की देवी माना गया है, और इस धन में आध्यात्मिक धन भी शामिल है, क्योंकि इसी आध्यात्मिक धन को पाकर हम 'धन्य' होते हैं। इस धन की प्राप्ति तभी संभव है, जब हम अपने अंदर की बुराइयों को बाहर करके इसके लिए जगह बना लें। इस प्रकार लक्ष्मी की आराधना द्वारा हम स्वयं को भौतिक एवं आध्यात्मिक संपत्ति के योग्य बनाने की साधना करते हैं।

अंतिम तीन दिन ज्ञान की देवी सरस्वती को समर्पित हैं। ये मूलत: विवेक की देवी हैं। विवेक का अर्थ होता है- सही एवं गलत का निर्णय लेने की ज्ञानपूर्ण दृष्टि का होना। विवेक के अभाव में धन एवं शक्ति अहंकारी हो जाते हैं। मां सरस्वती की आराधना हमें विवेक का प्रकाश प्रदान करके अपनी संपत्ति का समुचित उपयोग करके एक संतुलित जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार नवरात्र में देवियों की ऊर्जा हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन को संपूर्णता प्रदान करती है। गायत्री मंत्र 'ऊँ भूभुर्व: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्' में भी मूलत: मातृशक्ति के रूप में ऊर्जा का ही आज्जान किया गया है। ऊर्जा के इस आज्जान के केंद्र में 'सूर्य' है। और सूर्य ऊर्जा का भंडार है। इस

प्रकार नवरात्र का पर्व हमारे लिए स्वयं को धो-पोंछकर नवीन ऊर्जा को धारण करने योग्य बनाने का एक धार्मिक किंतु अत्यंत वैज्ञानिक उपक्रम है। इस अवसर पर रखे जाने वाले उपवास का यही उद्देश्य है।


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