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सोहम् सोहम्: स्वामी विवेकानंद का चिंतन..

जब हम विपत्तियों के अंधेरे से घिर जाते हैं, उस समय हमारे भीतर ही ऐसा प्रकाश होता है, जो हमें उन मुश्किलों से निकाल लाता है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन.. कई बार मैं मृत्यु-मुख में पड़ा हूं। क्षुधातुर रहा हूं, पैर फटे हैं और थकावट आई। लगातार कई दिनों तक मुझे अन्न न्

By Edited By: Published: Wed, 07 Aug 2013 12:35 PM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2013 12:41 PM (IST)

जब हम विपत्तियों के अंधेरे से घिर जाते हैं, उस समय हमारे भीतर ही ऐसा प्रकाश होता है, जो हमें उन मुश्किलों से निकाल लाता है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन..

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कई बार मैं मृत्यु-मुख में पड़ा हूं। क्षुधातुर रहा हूं, पैर फटे हैं और थकावट आई। लगातार कई दिनों तक मुझे अन्न नहीं मिला और अक्सर मैं एक पग भी नहीं चल सकता था। मैं पेड़ के नीचे बैठ जाता और ऐसा मालूम होता था कि अब प्राण निकले। बोलना कठिन हो जाता। मैं विचार तक नहीं कर सकता था। अंत में मेरा मन इस विचार पर लौट आया कि मुझे डर कहां? मैं कैसे मर सकता हूं? मुझे न कभी भूख लगती है, न प्यास। मैं तो वही (आत्मा) हूं। सोहम्। यह संपूर्ण विश्व मुझे कुचल नहीं सकता। ऐ परमेश्वर, देवाधिदेव, उठ खड़ा हो, चल और बीच में ठहर मत।

ऐसा विचार आने पर मैं नव-चैतन्य पा उठ खड़ा होता। इस तरह जब-जब अंधकार का आक्रमण हो, तो अपनी आत्मा का प्रतिष्ठापन करो और जो कुछ प्रतिकूल है, वह नष्ट हो जाएगा। क्योंकि आखिर यह सब स्वप्न ही है। विपत्तियां पर्वत जैसी भले ही हों, सब कुछ भयावह और अंधकारपूर्ण भले ही दिखे, पर जान लो, यह सब माया है। डरो मत, यह भाग जाएगी। इसे कुचलो और यह लुप्त हो जाती है। इसे ठुकराओ तो यह मर जाती है। डरो मत, कितनी बार असफलता मिलेगी, यह न सोचो। चिंता न करो। काल अनंत है। आगे बढ़ो, पुन:-पुन: अपनी आत्मा का प्रतिष्ठान करो। प्रकाश अवश्य ही आएगा। तुम चाहे किसी से भी प्रार्थना करो, कौन तुम्हें आकर सहायता देगा? जिसने स्वयं मृत्यु से छुटकारा नहीं पाया, उससे तुम कैसे सहायता की आशा कर सकते हो? स्वयं ही अपना उद्धार करो। कोई दूसरा तुम्हें मदद नहीं पहुंचाएगा, क्योंकि तुम स्वयं अपने सबसे बड़े शत्रु हो और सबसे बड़े मित्र भी। आत्मा का आश्रय लो। दुख और दुर्बलता के अंधकार के बीच आत्मा को प्रकाशित होने दो। भले ही प्रकाश आरंभ में अस्पष्ट और फीका हो। तुम्हें साहस मिलेगा और अंत में तुम सिंह के समान गरज उठोगे- मैं वह हूं, मैं वह हूं - सोहम् सोहम्..।

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